हकीकत में तो कई सारी समस्या ऐसी है जो केवल दिखती है.. हकीकत में तो मार्ग साफ है। || In reality, there are many problems which are only visible... in reality the path is clear.

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प्रियंवदा ! मुझमे कई सारी खामियां है, गिनने बैठु तो सुबह हो जाए.. पर अब उन खामियों को ठीक करने का समय नहीं है। समय ही बड़ी समस्या है.. रात्रि को निंद्रा नहीं आती, सेहत बनाने के चक्कर में सुबह जल्दी जग जाता हूं। अनिंद्रा को पोषित कर रहा हूं। कभी किसी से बाते कर ली, किसी का उपालंभ भी। किसी विषय में रस आया तो रातभर जगता हूँ। जानता हूँ की समस्या और विकट हो जाएगी पर फिर भी...!


पिछले कुछ दिनों में लगातार लिखने से अभी अनुभव कर रहा हूँ कि कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलना कुछ ज्यादा ही कठिन है। नए साहस खेड़ने की उत्कंठा तो अत्यंत है, लेकिन उतने ही बहाने भी अपना पक्ष मजबूत किए बैठे है। कई विचार है, जिन्हें हकीकत में उतारना है.. लेकिन सबसे बड़ा बहाना घूम फिरकर यही है कि समय कहाँ है अपने पास.. भले ही पूरा दिन यूँही सोच-विचार करने में गुजर जाए, इंस्टाग्राम की लत को पोषने में चला जाए, किसी खाई हुई ठोकर को कोसने में गुजर जाए..! हकीकत में तो कई सारी समस्या ऐसी है जो केवल दिखती है.. हकीकत में तो मार्ग साफ है। अपने आप पर उतना भरोसा अब नही कर पाने का एक कारण यह भी है कि मैंने लिए ज्यादातर निर्णय सिरे से ही गलत साबित हुए है.. और किए हुए साहस का परिणाम तो भुगतना ही होगा, जैसे भूल को भोगते है..!

तनाव में रहना जरूरी है क्या ? सतत मन की खींचतान चलती रहती है भीतर.. लेकिन इस द्वंद्व का लाभ कुछ भी नही होता, इस मनोमंथन के पश्चात अमृत तो चाहिए, अरे अमृत न मिले, विष भी चलेगा.. पर प्रत्युत्तर में चित्त अपना मस्तक दाए से बांए और बाएं से दाएं हिलाता है..!

सारे दिन समान नही होते.. आज पूरा दिन उलझन रही.. कुछ खटक रहा है पर समझ नही पा रहा हूँ.. पूरा ही दिन मन उदास रहा। क्यों ? पता नही। अपने दफ्तर के काम तो सारे निपटा दिए पर बस बेमन से.. बेवजह की उदासी.. कुछ न कुछ कमी अनुभव हुई पूरा दिन। कभी कभी इच्छा होती है.. यह सब छोड़-छाड़ के कहीं भटकने चला जाऊं.. हिमालय की किसी कंदरा ओ में.. फिर वहां भी साहस देखकर सुषुप्त मन जागृत होकर मूल से मना कर देता है.. कंधे झुक गए है मेरे..!

पुरुष को सदा ही गंभीरता लिए रहना होता है, अपनी मजबूती दिखाती रहनी पड़ती है, चाहे अंदर से कितना ही खोखला हो.. या बौखलाया हो। किसी के आगे वह अपनी पूर्णतः मजबूरियां जाहिर नही करता। न् ही अपनी पसंदीदा स्त्री के आगे न ही परिवार के आगे.. अगर दबी आवाज में कुछ कहता भी तो वह उसका परम-मित्र ही सुन रहा होगा.. लेकिन पूरी बात शायद अपने परममित्र से भी नही कहता है.. मैत्री होती ही ऐसी है.. मित्र जी-जान से मदद करेगा.. फिर समस्या टलने पर किसी दिन उसी समस्या पर दोनो जी भर भर के ठहाके लगाएंगे..! पुरुष को शायद सदा से आडंबर रखने का अभिशाप मिला है.. वह कभी कभी नही जताता उसका प्रामाणिक स्वरूप.. उसके आडंबर के पीछे कोई अनुचित मनसा नही होती, कोई अशुद्ध हेतु नही होता, फिर भी।

कभी कभी विचार आता है लिखना छोड़ दूं..!

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2Comments
  1. बहुत अच्छा और प्रभावशाली लिखते है आप, लिखते रहिये 🙏🤗

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    1. बहुत शुक्रिया पढ़ने के लिए...!

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