हिन्दुओ में कौमियत है ही कहाँ ?
हम सालो से शायद जीवन की महत्ता जानते है, और अब तो शायद आर्थिक सुधारो के बाद तो हम जीवन को और ही कुछ अलग जीने लगे है.. मौज, मजा के नाम पर मन से मुर्ख, आँखों से अंधे और शरीर से बेडोल हुए जा रहे है। कल-परसो इज़राइल ने घुसकर हिज़्बुल्ला के चीफ नसरुल्ला को हूरो के पास पहुंचा दिया। इस बात का प्रतिभाव भारत के कश्मीर में भी देखने मिला.. कितनी अजीब बात है, तुम्हारी मातृभूमि यह भारत वर्ष हो और तुम किसी और भूमि का संताप यहां व्यक्त करो.. यह तो वही बात हो गई की तुम्हारे पति के साथ रहते हुए भी तुम्हारा आशिक कोई और है.. या फिर तुम अपनी पत्नी को धोखा देते हुए किसी और स्त्री से दिल लगाए बैठे हो..!!!
विचित्रता तो तब अनुभव हुई जब समाचारो में छोटी छोटी बच्चियों को नसरुल्ला के पीछे आंसू बहाते देखा.. पढ़ने की उम्र में तुम यदि यह नहीं जानते की नसरुल्ला कितने देशो की आतंकी सूचि में अव्वल था तो धूल है तुम्हारी जीवनी में.. अमरीका बहादुर भी बाउंटी लगाए बैठा था उस नसरुल्ला पर..! कितने वर्षो से वह भी उसे ढूंढ रहा था और इज़राइल ने बस एक सूतली बम गिराकर ढेर कर दिया.. हालाँकि इस सूतली ने गढ्ढा बड़ा ही गहरा किया है.. लेकिन भारत में भी इस प्रसंग का प्रतिभाव देखना मुझे कुछ अनुचित लग रहा है..! सोचिए, कौम के प्रति कितनी घनिष्टता है इनकी मानसिकता में.. वरना भारतीय लोगो को क्या लेना देना लेबनन में क्या हो रहा हो.. क्या तुमने कभी ईरान की लघुमति के विषय में सोचा ? पाकिस्तान, बांग्लादेश में भी तो अन्यधर्म की लघुमतियाँ है.. आज भी पाकिस्तान से कुछ लोग अपनी कन्या के विवाह के लिए गुजरात के कच्छ में आते है, क्या कभी सरकार ने इनकी सारी सुविधाओं का ख्याल रखा है ? आज भी वहां से आए हुए लोगो की बनी बस्तियाँ केम्प कही जाती है..
एक हम है, जिन्हे फुर्सद नहीं कमाने से। उज्जवल भविष्य को प्राप्त करने के लिए वर्तमान में भी जागृत रहना पड़ेगा.. मुझे कभी कभी ख्याल आता है, किसी दिन भारत में भी इजराइल बनेगा.. फर्क इतना होगा की अभी इजराइल यहूदियों का है, भविष्य का कदाचित सनातनी हिन्दुओ का होगा..! इसके पीछे कोई कहे की जातिवाद कारणभूत है तो यह गलत होगा, कारण है उपेक्षा.. आज हैदराबादी असदु कुछ बोलता है, हम थोड़ा हो-हल्ला करते है फिर वापस अपने धंधे को लौट जाते है.. आज कुछ कट्टर सनातनी जैसा लिखा है ऐसा लग रहा होगा.. मैं कट्टर नहीं हूँ, सहिष्णु भी हूँ, पर तब तक जब तक मेरी सहिष्णुता को छेड़ा न जाए.. राजशाही युग में हुई भूल शायद हम आज भी दोहरा रहे है.. एक राजा पर आक्रमण हुआ तो उसका पडोशी राज्य सोचता था की अपने तक बात कहाँ आई है ? हम आज भी नैतिक मूल्यों की पीपुडी बजा रहे है.. क्योंकि हम एक आडंबर में है की सामने वाले को प्रेम से सुधारेंगे.. अरे वह साधू मेरी दृष्टि में सही नहीं है जो बार बार बिच्छू के काटने पर भी उसे पानी से बहार निकालने में लगा है.. मेरी दृष्टि से उस साधू को पहले बिच्छू का डंख काट देना चाहिए फिर उसे पानी से निकालकर उसकी रक्षा करो.. दया तब तक ही अच्छी है जब तक दया से उपद्रव न जन्मता हो..!
ठीक है..?
(दिनांक : ३०/०९/२०२४, १०:४८)