मैं व्यस्त हूं। || I am busy..

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व्यस्तताएं वास्तव में घेरती है, कभी तो हम चाहे तब भी कहीं व्यस्त नहीं हो पाते। दो तीन-दिन से एक साधना में लगा हूँ..! और पाता हूँ सिर्फ ध्यानभंग करने को तत्पर क्षणों को। वे क्षण भी अकाट्य है, अटल है.. और जैसे एक माटी के एक बड़े पिंड से कुम्हार कभी वहां से नोच रहा है, कभी यहाँ से। निराशा तो नहीं दिख रहीं न प्रियंवदा? निराश नहीं हूँ मैं। अस्पष्ट हूँ। हर बार तो धुंए मुझे कहीं ले जाते है, आज एक ही जगह पर लाकर छोड़ रहे है। उसी पन्ने पर.. वही डायरी का दसवा पन्ना.. जहाँ एक आशा भी है, और अस्पष्टता भी, वहां एक फेंसला भी है, और अफ़सोस भी.. होता है न, कुछ भी लिखने की चेष्टा.. बस वही है। पाना, खोना, और भावना, यही तो है जो सदा से बहलाते रहे है। या फिर कुछ उलझन बिन्दीभर की.. निरर्थक या तो गूढ़.. फिर विचार आता है, क्यों दृष्टिकोण को दौडाना है। वह भी तो थकता होगा..! फिर भी मैं उलझनों में मस्त रहता हूँ.. बलिदान के मायने समझने के लिए, या फिर क्रूरता को हस्तगत करने के लिए.. पता नहीं। कुछ निर्णय, या निष्कर्ष पर आना है मुझे भी, लेकिन जब तक स्वयं ही त्याग, बलिदान या क्रूरता पर नहीं उतर आता, असम्भव है। दुर्बलता क्या है पता है? त्याग और बलिदान को हानि समझना, और क्रूरता पर अफ़सोस व्यक्त करना। क्रूरता अच्छी है, पुरानी यादों को झेलने के लिए। हम बहुत कुछ झेल जाते है, कभी कभी तो असह्य दिखने वाले बाते भी.. और कभी एक क्षण भी खत्म नही हो पाती।



मुश्किल है, उस स्थिति को अपने से दूर करनी, उतनी ही जितनी अपनी ही चमड़ी उधेड़ना। जब एक-एक रोम ही मेरा न रहा हो तब भी.. कायरता बस कुछ भी बाते ही करवाती है। मैं शायद इस समय हर्ष से अवगत भी हूँ, ठीक इसी समय एक रहस्य की उत्कंठा का शिकार भी, एक अधूरापन भी है, और उलझनों में ग्रस्त भी। पीड़ा से परिचित भी हूं, और बलिदान से गभराया हुआ भी। क्रूरता पर उतर नही सकता, क्योंकि जवाबदेही की भावनाओं की कैद में भी हूँ। हाँ, सचमे प्रियंवदा ! मैं बहुत व्यस्त हूं। जब भी इस अकथ्य दसवें पन्ने पर आता हूँ.. यहाँ उलझनों को कुरेदने के लिए और उलझता जाता हूँ..! 


सभी रसों का रसास्वाद लेते हुए, व्यस्त हूँ.. अभ्यस्त हूँ..!
मृदुता  को  अछूत  एक  हस्त  हूँ..  शायद त्रस्त हूँ..!
बारबार हुआ न्यस्त मैं, तथा लगातार ध्वस्त हूँ।
उद्यमो से  पस्त  हूँ, भ्रमों से ही ग्रस्त हूँ..!
सौहार्द से निरस्त हूँ, आश्वस्त हूँ..!
सच कहता हूँ, प्रियंवदा !
मैं  व्यस्त  हूं।


|| अस्तु ||

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