प्रेम जो दुनिया की ज़बान बोलता है... love that speaks the language of the world...

0

"तुम्हे यह समझना चाहिए कि प्रेम कभी किसी आदमी को उसकी नियति की तलाश करने से नहीं रोकता। अगर वह उस खोज को त्याग देता है, तो इसलिए कि वह सच्चा प्रेम नहीं होता... वह प्रेम जो दुनिया की ज़बान बोलता है।"
 - The Alchemist



बस यही ध अल्केमिस्ट पढ़ने में व्यस्त हुआ मैं अपने खेत पर चारपाई डाले बैठा था, भूतिया पीपल दिन में इतना भूतिया नहीं दीखता, रात को इसे हवा में हिलते देख कोई इस रास्ते पर भी नहीं आता था। डाघीया अपनी पूंछ पटपटाता आया, और एक लम्बी सांस छोड़ते बोला, "हूँह इंसान..."


"आज क्या हुआ?" डाघीया है तो श्वान लेकिन इंसानी जुबान को जानता है, पूर्वजन्म में कुछ हुआ होगा तो श्वान योनि में अवतरित हुआ है।


"तुम सब अपने सच्चे प्रेम की अलग और नई व्याख्या करते हो। जिसके जैसी सहूलियत उसका वैसा प्रेम। अच्छा, इंसान ऊपर से खुद ही उसे सच्चा साबित करते है। कहते है यही सच्चा है। हाँ यह भी है कि भला अपनी बात को कौन झूठ कहना पसंद करता है। कोई नहीं कहता कि मैं झूठ कह रहा हूँ। कुछ बाते और चीज होती जो काल्पनिक होती है, उस पर भी अवधारणा ही बन सकती है कि या तो वह सत्य है, या झूठ।" अपने श्वानमुख से प्रेम को दार्शनिक की भाँती झाड़ता डाघीया बोला।


"अरे तो तुझे क्या समस्या है, तू अपने बेकरीवाल के बिस्कुट खा, भौ-भौ कर, और सो जा.." मैंने उसे नजरअंदाज करना चाहा।


"मान ले एक लड़का-लड़की है, दोनों के शहर अलग है। प्रेमी है। दोनों के बिच की दूरी के कारण शंका पनपती है विश्वासघात की। तो कोई कहता है कि सच्चा प्रेम नहीं था, सच्चे प्रेम में शंका नहीं होती। अब लड़के ने दूरी के चलते लड़की से दूरियां बना ली और अपने ही शहर में दूसरी लड़की से संबंध बना लिया, उधर पहली वाली लड़की विरह में अपना जीवनयापन करने लगी। लोग कहेंगे लड़की ने सच्ची मुहब्बत की, भले वास्तविकता में उसने अपने अमूल्य जीवन को बर्बाद करने के अलावा कुछ भी न किया हो। लड़की ने फिर कहीं शादी कर ली, कुछ महीनो बाद लड़का उस लड़की के शहर में आया, दोनों अचानक कहीं टकरा गए और फिर छिपछिपकर एक दूसरे से मिलते रहे। निति अनुसार यह गलत है, लेकिन प्रेमी ऐसा करते है, उनकी नजरो में सही था, तो उचित भी है। फिर जब ज़माने को पता चला, इन दोनों को कोसा कि यह गलत है, दोनों किसी और से विवाहित है पर यहां एकदूसरे मिलते है, तो प्रेम फिर से एकबार निरर्थक हुआ, और ज़लील करने वाला भी।" दो बिस्कुट चबाते हुए इतना लम्बाचौड़ा बोल गया, लगता है इसके बिस्कुट कम करने पड़ेंगे।


"देख दुनिया मानती है कि प्रेम होता है, दीखता नहीं पर होता है, तो तू भी मान ले ना तेरा क्या जाता है? अगर उस लड़के लड़की के बिच सच्चा प्रेम होता तो वे अलग होते ही नहीं, आकर्षण का सिद्धांत तो यही कहता है कम से कम।" अपन भी थोड़े फेंकूचंद बनने को दो कदम आगे बढ़े।


"आकर्षण का सिद्धांत... शायद पहले मैं बता चूका हूँ। वही शाहरुख़ वाला डायलॉग, कि किसी वस्तु को सिद्दत से चाहो तो कायनात तुम्हे उससे मिलाने में लग जाती है। ऐसा नहीं है, अगर वो चीज न मिली, तो ठीकरा अपने सर फूटता है अधूरी चाहत का। चाहे तुमने कितनी ही क्षमता से चाहा हो। वास्तविकता और कल्पना एक दूसरे की परम शत्रु है। जैसे मैंने किसी की कामना की है, और वह मेरे सामने आ जाए पर नजरो से दिखे नहीं, तब भी वह आकर्षण का सिद्धांत तो सही हुआ लेकिन वास्तविकता यही है की मुझे तो मिली नहीं। अब जैसे मान लीजिये, उम्र और इस कथित प्रेम का भी कोई लेनदेन नहीं है, अपनी बॉलीवुड की एक बुढ़िया आज भी कुंवारी बैठी है, क्या उसके आकर्षण में कोई कमी रह गई होगी? या फिर जैसे एक उसी बॉलीवुड की प्रौढ़ा स्त्री अपने से आधे उम्र के लड़के को अपने मोहपाश में बाँध लेती है। अब यहाँ तो इस कथित प्रेम ने असीमितता ही दर्शा दी। फिर वही सोच समझ आती है कि प्रेम भी एक सामान्य कमजोर हृदय का वासना भाव है, जो शारीरक आपूर्ति के लिए उपयुक्त है, और उस आपूर्ति को सत्य ठहराने का विकल्प। 


आज लगता है सचमे इसके बिस्कुट का कुछ अपचा हुआ है इसे। "तू कहना क्या चाहता है यह बताना।" मैंने बुक बंद करते हुए पूछा।


"हूँह दो पैरो वाला मानवी ! एक श्वान से सलाह-मशवरा कर रहा है। यही है तेरी बौद्धिकता? मेरा काम है बोलना, कोई अनजान वस्तु का विरोध करना, जागृत करना.. यह जो तू फ़ालतू की बाते लिखता रहता है, और जिसमे कोई तर्क, तथ्य नहीं होता, तू कुछ ढंग का काम करता तो आज चार पहियों में घूमता।"


"तू प्रेम की बात से सीधा मुझ पर क्यों आ धमका?" समस्या यह है की इसे कुछ ज्यादा बोलता हूँ तो यह पुरे खेत में दौड़ाता है, और अब तो मुझे कोई भर्ती की तैयारी भी नहीं करनी है की दौडूँ।


"अगर इंसानो में प्रेम भाव होता तो तुम्हे परमाणु की आवश्यकता ही न थी। सोच जरा, वो फ़्रांस का साढ़े बयालीस हजार टन का न्यूक्लियर पॉवर्ड एयरक्राफ्ट कॅरियर युद्धाभ्यास के लिए यहाँ आ रहा है, किसी दिन उस में कोई खराबी-लीकेज हुई तो समुद्र की क्या हालत होगी? यूरेनियम से समुद्र भर जाएगा।"


"तो उसमे मैं क्या करूँ? मेरे हाथ में है क्या? और वैसे भी आज का ब्रह्मास्त्र वही है।"


"एय पहले तुम लोग तय कर लो, कल परसो कोई प्रेम को ब्रह्मास्त्र कह रहा था.." डाघीया अपना सर खुजाते बोला।


"कह दिया होगा, प्रेम के बहुत सारे रूप है, ऐसा मैंने सुना है।" अब इस डाघीया को टालने में ही भलाई है। 


"हूँह आदमजात ! तुम्हारे पास कोई सटीक व्याख्या है ही नहीं, बस रूपको से काम चला रहे हो।" डाघीया अपने तीक्षण दांत दिखाता बोला।


"अबे तुझे क्या, हमारे पास क्या है, क्या नहीं, और तू तो ऐसे बात करता है जैसे तुझे कोई पॉमरेनियन छोड़ के चली गई हो.."


इतना बोलना था की दौड़ा दिया मुझे। खेत के दो चक्कर लगाकर अभी यह हाँफते हुआ लिखा है, तो आप भी पढ़ते हुए थक गए होंगे, बस इसी लिए,


|| अस्तु ||

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)