प्रियंवदा! मन की बात मानी जाए, या बेमन से ऐसे ही बकवास किया जाए? || The mind is shallow, it fills up very quickly...

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आज बिलकुल बेमन से लिख रहा हूँ प्रियंवदा ! क्योंकि मन जो चाहता है न वही कभी पूरा होता नहीं है, और बहुत नजदीक पहुँच कर भी हाथ ना आए कोई चीज तो वह भावना शायद तुम भी समज सकती हो...! छोडो यार मन का क्या है, यह तो हर छोटी छोटी बातो बहक जाता है, कभी तो ख़ुशी के अतिरेक में नाचता है, कभी तो संताप के समुद्रतल पर चला जाता है। इसका तोड़ तो कौन साध पाया है? सतोगुण का साधक तो हूँ नहीं मैं.. रजस और तमस में ही मन रचा रहता है। इन दोनों से पार हो तब सत की अग्रसर होगा न..! एक बार क्या हुआ कि ऑफिस को कुछ ज्यादा सीरियसली लेते हुए मैंने पिछले साल वो बापुजी के प्रिय सिलाई वाले कपडे ले लिए..! देखो फैशन का इतना पता नहीं है, बस इतना कह सकता हूँ कि एक होता है रेडीमेड जोड़ी, दूसरी होती है कापड लेकर उसे सिलवाओ.. तो मैंने भी अपनी बढ़ती उम्र को देखकर कुछ नयापन आजमाने के चक्कर में वो सिलाई वाली दो जोड़ी कपडे ले लिए.. हालाँकि किम्मत में तो रेडीमेड और इस सिलाई वाले में कोई फर्क नहीं है पर एक बात है कि यह सिलाई वाले फटते नहीं है.. परेशान हो चुका हूँ, या तो ऊब चुका हूँ। जीन अच्छी हे इससे तो, या तो कलर फेड हो जाएगा, या तो कहीं न कहीं से धागे खुलने लगेंगे..! 



ऐसा ही एक बार और हुआ था, बड़े चाव से वुडलैंड के जुत्ते ले आया था.. दो साल बाद तो मैंने उसे पहनकर दौड़ना शुरू कर दिया की कहीं से सॉल खुले उसका.. अब मैं थोड़ा क्रूर भी हूँ इस मामले में कि जब तक कोई चीज अपना प्राणत्याग ना कर दे तब तक मैं उसे छोड़ता नहीं। (लोगो का क्या है, वे तो मेरी इस क्रूरता को कंजूसी का नाम भी देते है।) जो भी हो, मुद्दा यह था कि मन है न छिछरा है, बड़ी जल्दी भर जाता है किसी चीज से, और कभी तो कोई काम/बात कितनी ही बार रिपीट करने पर भी भरता नहीं..! इन्शोर्ट मन के चक्कर में बेमन से भी यह इतना लम्बा अनुच्छेद लिख दिया..! लेकिन आज बस इतना ही है, आप फ़िक्र न करो, क्योंकि मुझे एक काम है, निपटाना है, और इसी लिए बस ऐसी छोटी छोटी पोस्ट करने का सीखा हूँ ताकि कुछ दिन की शिड्यूलेड़ पोस्ट ब्लॉग पर डाल सकूँ, और यह स्ट्रीक भी बनी रहे।


तो तुम्हारा मन क्या कहता है प्रियंवदा? मन की बात मानी जाए, या बेमन से ऐसे ही बकवास किया जाए?


|| अस्तु ||

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