प्रियंवदा ! बचपने में जो मजा है वह इस गंभीरता में नहीं..! यह विचारक बनना, या प्रत्येक पल को किसी गंभीरता की दृष्टि से देखना, या प्रत्येक पल को अपनी बुद्धिमत्ता ने गढ़े किसी वाद में बिठाना.. अनुचित है। हाँ ! हमे कुछ न कुछ प्रतिक्रियाए देनी होती है, पर वह प्रतिक्रियाएं सांकेतिक भी हो सकती है। सांकेतिक प्रतिक्रिया अर्थात.. भोजन न करना..! अपनो से ही कभी हम रूठते है तो सबसे पहला भोग भोजन का ही दिया जाता है। परिवार वाले खूब कहते है आजा खा ले.. पर ना... हम ठहरे जिद्दी.. हाँ स्वाभिमानी.. एक बार मना कर दिया तो कर दिया..!!!
ऐसा ही हुआ कुछ कल मेरे परममित्र प्रीतम परदेशी के साथ..! प्रीतम का बस आधुनिकतावाद और रूढ़ितावाद के चक्कर में अपने परिवार से झगड़ा हो गया.. मातापिता ने खूब समझाया, लेकिन प्रीतम ठहरा आत्मसम्मानी.. उसने रात्रि भोजन का परित्याग किया.. और अपने कमरे में चला गया..! माँ तो माँ है.. बेचारी ने दो-तीन बार मनाया, पर यह है की जिद्द पर अड़ गया, कि "ना ! तुम मेरी बात नहीं मानते, तो मैं तुम्हारी बात क्यों मानूं?" प्रीतम भूल गया था, विरोध के लिए ऊर्जा की आवश्यकता प्राथमिकता है। और ऊर्जा का स्त्रोत भोजन है।
मैं कल yq में सफाई अभियान चला रहा था। होता क्या है, कभी कभी हम जिसे अपने परमस्नेहि मानते है, शुभचिंतक मानते है, जरुरी नहीं की उसके मन में हमारे प्रति उतना ही स्नेह-सम्मान हो। या फिर उनके अव्यक्त व्यवहार के चलते हम समझ न पाते हो। जो भी हो, जब हमे विश्वासघात जैसा कुछ अनुभव होता है तो पहला विचार तो यही आता है की अब मेरा क्या होगा.. जिसपर खुद से ज्यादा विश्वास किया उसने तो कुछ कद्र ही नहीं की। मन बड़ा उदास उदास रहता है, निराशावाद छा जाता है। किसी जॉक पर भी हंसी नहीं आती, बल्कि जॉक को भी गंभीरता की दृष्टि से देखते है, जिस पात्र/व्यक्ति पर जोक बना है हम उस पात्र से सहानुभूति अनुभव करते है। इन्शोर्ट माइंड डायवर्ट करने के बदले हम उसे और उलझाते है..! मैं ऐसी स्थिति में मन को खुला छोड़ देता हूँ और लिखने लग जाता हूँ.. जो भी मन में विचार आता है.. ड्राफ्ट्स भर देता हूँ..! एक समय पर yq पर खूब आड़ेटेढ़े और बेबुनियाद कोलेब और बुरे से बुरी कविताए-पंक्तियाँ लिखता था.. बस उस निराशावाद को दूर करने.. मन को कहीं और व्यस्त करने के लिए। धीरे धीरे समय सब ठीक कर देता है। या फिर तुममे एक कठोरता बना देता है, सबसे पर्याप्त दुरी बना सकने की क्षमता भर देता है। किसी से भी पूर्णतः लगाव न हो पाने की शक्तियां पोषित हो जाती है। और धीरे धीरे वहां सौम्यता की जगह कठोरता आ जाती है, हर स्थिति से ऊपर उठकर देखने की शक्तियां निर्मित होती है। दृष्टिकोण थोड़ा विस्तृत होता है और तुम दोनों परिपेक्ष्य को अपनी दृष्टि से देख पाते हो तब अनुभव करते हो कि वो भी अपनी जगह सही है, मैं भी अपनी जगह सही हूँ। फिर गलत कौन है? परिस्थिति.. पता नही।
सदा ही गंभीरता को कौन गले मे बांधकर चले? मैं yq सफाई के साथ साथ कुछ लिखने के लिए भी ढूंढ रहा था। हुआ कुछ यूं कि मैंने दो पोस्ट लिखी, शिड्यूल करने के बदले दोनो एक ही दिन में पब्लिश कर दी। सोचा यह था कि दो-तीन दिन के लिए शिड्यूल्ड पोस्ट डाल दूँ और एक बुक है वह पढ़ लू.. लेकिन होता उल्टा ही है। शिड्यूल के बदले डायरेक्ट पोस्ट हो जाने से, और डेली एक ब्लॉगपोस्ट की स्ट्रीक बरकरार रखने के चक्कर मे कुछ न कुछ लिखना था, तो सोच भी रहा था कि अब क्या लिखूं.. तभी प्रीतम का मैसेज आया, "आज तो भूखा ही सोना पड़ेगा..!"
"अब क्या हो गया?"
"कुछ नही, किसी बात पर घर पे मतभेद हो गया तो मैंने जिद्द में खाना नही खाया, अब यह लोग तो खा-पीके सो गए है, और किचन में कुछ बचा ही नही..!"
अब मुझे हंसी भी आ रही थी, और सहानुभूति भी व्यक्त करनी थी, दोस्तो पर ऐसी विकट स्थिति में हंसने का मजा वैसे अलग ही है, एक परमसुख का अनुभव होता है, जब दोस्त किसी बेबुनियाद संकट में फंसा हो...
"होता है भाई, बोल जोमैटो से मंगवा दू कुछ?"
"मरना है क्या, एक तो यह लोग वैसे ही नाराज चल रहे है, ऊपर से जोमैटो वाला अभी चुप-चाप तो आएगा नही, यह लोग जग गए तो खाने के बदले मार खाना तय है।"
"अच्छा, बहुत भूख लगी है?"
"हाँ।"
"मुझे तुम्हे एक बात बतानी थी.."
"हाँ, बताओ, तुम्हारी बातों से ही कुछ पेट भर जाए।"
"आज ऑफिस में हमने शाही पनीर और तंदूरी खाए है।"
"पाप लगेगा तुम्हे.."
"अरे सुनो न, नरगसी कोफ्ते और ठंडी छाछ भी थी।"
"भगवान से डरो तुम.."
"जीरा राइस और दाल तड़का भी, कई दिनों बाद यह खाना.. आइहाए.. मजा आ गया था आज तो..!"
"हाँ चिढ़ा लो.. आज तुम्हारा दिन है.."
"दिन नही रात है, पौने बारह हो रहे है।"
"Hmmm"
"अच्छा, देख लो किचन में मैगी-वेगी हो तो उससे काम चला लो।"
"नही है, पहले ही देख लिया।"
"फिर तो एक और बात बताऊं?"
"नही.. बस.. रहम.. कृपादृष्टि.."
"तुम क्यों पंगे लेते रहते हो? देखो खाने से किस बात का झगड़ा? पेटभर खा लेना चाहिए.. मुझे अनुभव है, कभी मैं भी बचपना करता था, गुस्सा खाने पर निकालकर.. लेकिन यह उद्धताई है वास्तव में। एक बार सुबह सुबह मैं भी घरवालों की सलाह-सूचनाओं से तंग आकर भूखे पेट नास्ता किये बिना ही ऑफिस के लिए निकल गया। लेकिन भुखेपेट भक्ति भी नही होती, यहां तो काम करना था, मैं चला गया मार्केट। दही-परांठे दाबने.. सरदारजी है एक गुरुद्वारे के सामने। बहुत अच्छा बनाते है, वैसे भी भूखे को स्वाद से लेन-देना नही होता। गुस्से में तो था ही, कान में ब्लूटूथ लगाकर कुछ वीडिओज़ देखते हुए आलूपरांठे और दही को निगल रहा था बस, तभी सरदारजी ने पास आकर टोक दिया, "बेटाजी, महीने के दो-तीन लाख तो कमा लेते होंगें?"
मैंने कानो से ब्लूटूथ हटाकर कुछ असमंजसता से सरदारजी की और देखा।
"मैं केया, बेटा महीने लाख-दो लाख तो कमा लेते होंगे?"
मैं कुछ तातपर्य समझा नही तो मैंने नकार में माथा हिलाया।
"तो बेटा, खाते टाइम भी इतना फोन में क्यो लगे हुए हो?"
अब मैं सरदारजी का भाव समझ गया था, लेकिन मुझे और ज्यादा क्रोध उपजा। सलाह-सूचनो से तंग आकर में घर से बिना खाए निकला था, सरदारजी भी अब सलाह देने को उतारू होने वाले थे। वे वयोवृद्ध थे, मैं इतना भी कठोर नही की उद्धताई पर उतर आऊं.. मैंने फटाफट नास्ता खत्म किया। और वहां से नमस्ते कर निकल आया। दिनभर ऑफिस के काम निपटाते हुए गुस्सा अपने आप शांत हो गया, और फिर धीरे धीरे सब समझ आने लगा, की किसी को अपनी फिक्र होती है, या किसी को अपने से स्नेह होता है वे ही अपने को सलाह देते है, अपने लिए एक मार्ग का चयन करके देते है, अपने अनुभवों का कथन कहते है। बस उनका तरीका थोड़ा सारगर्भित होता है तो हम उस क्षण अपने मन के झंझावातों के चलते ढंग से समझ नही पाते और और उलझते चले जाते है...!
"अरे बस करोना यार, एक तो यहां भूख से वैसे ही दिमाग ठीक नही है, और तुम हो कि इतना लंबा मैसेज भेज रहे हो। कसम से तुमने जो भूखे को वो शाही पनीर याद दिलाया है, रौरव में अपनी सीट बुकिंग की है।"
"अरे कोई बात नही, वहाँ से भी तुम्हे अधजले मांसाहार के फोटोज़ भेजूंगा।"
"यक.. सो जाओ तुम, लायक नही तुम से कुछ शेयर करने के।"
"अरे मजाक कर रहा हूँ, बुरा न मानो। जाओ चीनी फांक के सो जाओ.."
"हां.. यही अमृतकुंभ है मेरे लिए।"
फिर भी लगभग साढ़े बारह को उसने 'मेरी' बिस्किट का फोटो भेजा.. "तिनके का सहारा" और मैने वो प्रसिद्ध बाबा फन्नीरुद्धाचार्य का "बिस्किट का बिशकुट अर्थात विष+कूट" वाली रील भेज दी, और सो गया।