रविवार, कैसा था? सुबह सुबह तो ऑफिस जाकर सबसे पहले "स्वाभिमान या भूख" नाम से कल रात का बना प्रसंग डिट्टो लिख दिया। फिर वही साप्ताहिक लक्ष्मीजी का वितरण कार्यक्रम। लगभग दोपहर दो बजे घर पहुंचा। चारेक बजे मोटरसायकल धुलवाने पहुंचा तो वह शटर गिरा चुका था। वैसे भी ठंडी का मौसम आ रहा है, पानी से थोड़ी परहेजी मोटरसायकल भी कर लेगी तो क्या ही फर्क पड़ेगा। शाम के छह से सात शाखा में गया, कुछ बौद्धिक बाते, और शारीरिक खेल के बाद जहरीले-गजे के कुछ कड़वे प्रवचन सुनने के बाद अभी ग्राउंड में बैठा था, एक सिगरेट सुलगाई, धुंए को आकाश की तरफ छोड़कर सोच रहा था कि आज क्या लिखा जाए? मुझे पिछले कुछ समय से, खासकर हिंदी में लिखना शुरू किया तबसे वो "वातनु वतेसर" तो छूट ही गया है, मैं, गजा, प्रीतम, डाघिया, और बेकरिवाल.. खेर, meta ai को पूछा लिखने के लिए कोई टॉपिक सजेस्ट कर, तो वो भी मजे लेने लगा, बोला लिखो,
1. मेरे पास टाइम नही है।
2. मेरा स्मार्टफोन मेरी पत्नी है।
3. मैं एक आम आदमी हूँ।
4. मेरे घर मे कौन कौन है।
5. मैं कुछ भी कर सकता हूं।
इच्छा तो हुई कि इस सिगरेट से इसे थोड़ा जलाऊ, पर फिर याद आया कि फोन खराब हो जाएगा।
अब? फिर से कन्फ्यूज़। सोचा आज अभी जो हो रहा है वही लिख दु.. क्योंकि मेरे पास टाइम नही है। (ब्लॉगर की स्ट्रीक बनानी है भाई।) तो अभी ग्राउंड में बैठा हूँ, हजारो झींगुरों की आवाज आ रही है। दो-तीन टिटेरी (Red-wattled Lapwing) झगड़ा कर रही है। कुछ लोग मैदान के दूसरे छौर पर पीने बैठे है। कुछ किशोर लड़के मैदान के बीच बनी क्रिकेट पिच पर मोबाइल में bgmi खेल रहे है शायद, क्योंकि गनसाउंड आ रहा है यहां तक। एक कोई ट्रांसपोर्टर है, गाड़ी वाले को कह रहा है, "देदे ना उस खाखी को पानसो (#@&)", और कुछ बूढ़े खाना पचाने के लिए टहल रहे है, और एक लड़का फोरव्हीलर सीख रहा है।
वैसे यह स्मार्टफोन भी पत्नी जैसा तो है ही। क्योंकि यह भी जीवनसंगी ही है आजकल। कभी कभी यह खड़ूस पत्नि की तरह तंग भी करता है, तो कभी प्रेमालु बनकर कुछ अच्छी अच्छी बातें भी इंटरनेट के माध्यम से कहता है। इसे चार्जिंग चाहिए होता है, पत्नी को पैसे..! इसको भी गुस्से में कुछ कह नही सकते, उसे भी। यह रूठ जाए तो हैंग हो जाता है, वो मायके.. खर्चा इसका भी है कवर और टफन ग्लास का, खर्चा उसका भी मेकप और ठाठ का..! बस फर्क उतना है कि स्मार्टफोन को म्यूट कर सकते है.. हाँ वैसे भी हम आम आदमी कर भी क्या लेंगे.. आदमी सच मे आम है, रस खत्म होते ही गुठली की तरह फेंक दिया जाता है। मेंगो पीपल.. आम आदमी की सबसे बड़ी समस्या क्या है पता है, उसकी ख्वाहिशें ज्यादा है, या उसे ख्वाहिशें दिखाई जाती है जिसके पीछे वह खींचा जाता रहे। और कुछ आम आदमी आल्टो के बदले थार ले आते है। थोड़े ही महीनों में ईधर उधर मेसेज डालते है, भाई emi आ रही है, और सेलेरी आई नही है। तब लगता है कि फिर इस हाथी को क्यों पाल रहा है। क्योंकि उसने लेह-लदाख और रोडट्रिप्स के लक्ज़यूरियस वीडिओज़ देखे थे। आधे से ज्यादा आम आदमी बस ख्वाहिशों में ही जीता है। कभी कोई राजनैतिक दल उसे ललचाता है, कभी वो कोई प्रोडक्ट.. मैं भी एक आम आदमी हूँ.. पर मैं थोड़ा गणित करता हूँ तो पहले से समझ लेता हूं.. क्या मेरे लिए सही है, और क्या नही, फिर भी सबसे ज्यादा मैं ही ठगा जाता हूँ.. आम आदमी हूँ।
मैं कुछ भी कर सकता हूँ.. स्ट्रीक मेंटेन करने के लिए बिना कोई टॉपिक के बस ऐसे ही उलजुलूल लिखकर अपना और आपका समय अच्छे से बर्बाद कर सकता हूँ.. खेर, मेने तो आधा घंटा बर्बाद कर लिया अपना यह लिखने में.. और आपने भी आपके अमूल्य दो-तीन मिनट.. मुबारक हो.. आप भी कुछ भी कर सकते है।