रॉन्गनंबर या मेरा टाइमपास

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#रॉन्गनंबर या मेरा टाइमपास
बड़ी ज़ोर की बारिश हो रही थी। आसमान में बिजली कड़कड़ा रही थी पर घर पर बिजली गुल थी। तभी फोन की घंटी बजी और जीत ने रिसीवर उठा के कहा हैलो, कौन है? उधर से आवाज़ आई ओह, सॉरी, रॉन्ग नंबर, और फोन रख दिया गया। जीत को दो साल पहले की वो तूफानी रात याद आ गई। उस दिन भी तो ऐसी ही कड़कड़ाती बिजली गरज रही थी, चारो और से घूम कर तूफानी हवा जैसे उसके घर की सारी खिड़किया उखाड़ फेंकने को उतारू हुई थी। जीत एक हाथमे ग्लास लेकर सोफे पर पसरा हुआ था, और ग्रामोफोन पर बज रहा था, 

“ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर कि तुम नाराज ना होना,
कि तुम मेरी जिंदगी हो कि तुम मेरी बंदगी हो..!!”

ग्लास से दो घूंट पी कर जीत उठा, सोफे के साइडमें टेबल पर रखी ऐशट्रे में से सिगार के दो लंबे कश लिए, और ग्रामोफोन के पास जाकर उसे बंद किया। उसके पैर हल्के लड़खड़ा रहे थे, पर वह पूरे होश में था। अपने अकेलेपन में भी वह पूरा मस्त था। न उसे किसी की फिकर थी, न उसकी किसीको। उतने में उसके किचन से कुछ गिरने की आवाज आयी। बाहर कुत्ते रो रहे थे। एक-दो निशाचर उल्लू ने भी चीख कर अपने होने का परिमाण दिया। लड़खड़ाते पैरो से जीत किचन की तरफ बढा, लड़खड़ाते लेकिन निर्भीक कदम थे उसके। खुली खिड़की से आई एक पूर्णकाली बिल्ली पतीले से दूध चाट रही थी.. उसका काला रोयेंदार देह घुप्प अंधेरेमें घुल चुका था, दिख रही थी तो बस दो आंखे।

जीत ने किचनमे आते ही, फ्रिज पर पड़ी चम्मच उस बिल्ली पर फेंकी, बिल्ली उसी खिड़की से भाग निकली। किचन में फैले रायते को समेटते जीत गुनगुना रहा था, 

“किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
किसीका दर्द मिल सके तो ले उधार
किसीके वास्ते हो तेरे दिल में प्यार
जीना इसी का नाम है”

और तभी उसके फोन की घंटी बजी। पतीले को पटकते हुए जीत फोन की तरफ जा रहा था। पता नही नशे में या कैसे उसका पैर कही टकराया और वह मुहके बल जा गिरा। लेकिन गाना गुनगुनाता वह उठा, 

"मुसाफिर हूँ में यारो, न घर है, न ठिकाना”

घंटी बजे जा रही थी, अपनी ही धुन में मस्त जीत ने रिसीवर उठाया, "हैलो"

सामने से एक मधुर आवाज आई, "हैलो सर, गुड़ इवनिंग"

थोड़ा रिलेक्स फील करता जीत सोफे पर बैठते हुए, "वेरी गुड़ इवनिंग, किसका काम है आपको।"

"सर में अपना बैंक से सपना बात कर रही हूँ, आपको लोन मिल सकता है, तो कोई रिक्वायर्मेंट है आपको सर?"

और जीत का चढा सुरूर उतर गया, "तुम लोगो को कितनी बार मना किया है, मुजे फोन मत किया करो।" और गुस्सेमें रिसीवर को पटक कर, किचन की तरफ जाने के लिए खड़ा हुआ ही था कि फोन की घंटी फिर बज उठी, जीत ने रिसीवर उठा के कान पर रखा, "हैलो"

सामने से फिर एक मधुर आवाज में, "हैलो, सर गुड़ इवनिंग"

"गुड़ इवनिंग"

"सर में अपना बैंक से मोना बात कर रही हूँ, आपको बिना एन्युअल चार्ज के क्रेडिट कार्ड मिल रहा है तो क्या आप इसे अवैल करना चाहेंगे सर?"

"ओ हेलो तुम लोग को और कोई काम नही है क्या? नही चाहिए तुम्हारा क्रेडिट-फ्रेडीट अपने पास रखो भई" कहके जीत ने फिर रिसीवर को पटका।

इधर उधर नजर घुमाता जीत देखता है, बाजुमें टेबल पर पड़े ग्लास में अभी दो कतरे बाकी थे। तुरंत ग्लास उठा कर गटक गया। अपने दोनों हाथ आपसमे सर के पीछे, दोनो हाथकी उंगलियोंको आपसमें पिरो कर बस मन को शांत कर दो कतरे से जो भी मिले जितना भी मिले वह नशा अपने पर हावी होने देने को आतुर था, लेकिन फिर घंटी बजी..

जीतने रिसीवर उठाया, कान पर लगाया और सामने आवाज आई, "ओह, सॉरी, रॉन्ग नंबर" और फोन रख दिया गया।

और आज फिर जीत पूरा खम्भा मार कर सो गया..!

© मनमौजी

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