अखबार वालोंने बड़ी बड़ी हेडलाइन में छापा.. गुसैल जजने दोनो वकीलों को डांटा।
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पेपर को मोड़कर पटकते हुए अपनी कुर्सी पर आसन जमाते हुए, जजसाहब स्वगत ही, "ये रद्दी वालो के लिए भी कुछ सजा सोचना पड़ेगा।" और अपनी कलरबुकको खोलकर कल के अधूरे चित्र में रंग भरने लगे। उतने में ही डंडेवाला अपनी पूरी क्षमता से चिल्लाया, "कहानी हाजर हो.." और जज साहबका ब्रश चित्रसे बाहर फिर गया.. "ओय धीरे से बोल्या कर, नही तो ए ही डंडा से तेरे रंग बिखरेंगे…"
कहानी कटघरे में आकर खड़ी हो गई। दोनो वकिलोने जज को नमस्कार कर अपनी कुर्सी पर स्थान ग्रहण किया। और वकील धुंआधार ने अनुमति माँगते हुए कहा, "आपकी अनुमति हो तो में भाव को बुलाना चाहूंगा जो इस कहानी का 'बेस्टफ़्रेंड' है.." (जो बेचारा आई लव यू बट एज़ फ्रेंड के चक्कर मे फंसा हुआ था).
जजसाहब पन्ने पलटते हुए, "ओय ग्रे कलरके, जब तूने अग्रिम सूचना दे ही रखी है, फिर ये अनुमति-फनुमतिनु छोड़ और फटाफट केस बढा..!"
"जी माय लॉर्ड", कह कर वकील श्री धुंआधारने कठघरेमे खड़े भाव की ओर बढ़ते कहा, "जजसाहब यह भाव है, या यूँ कहुँ की कहानी इसके बिना कुछ नही है, भाव का अभाव खालीपन की अनुभूति करता है, या ऐसे कह सकते है की जैसे आप ये चित्र में गुलाबजामुन का चित्र बनाये लेकिन आप भी जानते है की गुलाबजामुन में न तो गुलाब का भाव है न ही जामुन का.. यदि वह भाव होता तो आज गुलाबजामुन इस तरह मिठाई वालो के यहां चासनीमे डूबा हुआ न होता।"
जजसाहब सर खुजाते हुए एक हाथमे हथौड़ा लेकर, "ओय कहना क्या चाहता है, ठीक से समजा नही तो ये हथोड़े से में समजाउ? पता नही, कहानी के केस में मिठाईवाला कहाँ से आ गया?"
अपनी बात को दूसरी दिशामे जाता और जज के धमकानेसे वकील धुंआधार का रंग थोड़ा फीका पड़ने लगा, "माफ कीजिये माय लॉर्ड।" और भाव की तरफ मुड़कर, "तो श्रीमान भाव, क्या आप इस कहानी को जानते हैं?"
"जी हाँ!" बस दो शब्द कहकर भाव चुप हो गया।
वकील धुंआधार : "कैसे जानते है?"
भाव : "जी, में इनका हो चुका हु, किन्तु ये मुझे नही समझती।"
वकील धुंआधार : "इसका क्या मतलब है?"
भाव : "में इसको अक्षरसः समझता हूं, इसका सर्वस्व में जानता हूं, मेने ही इसका ब्यूटीपार्लर का खर्चा उठाया था, आई मीन इस कहानी की सुंदरता का कारण मैं हूं।"
वकील धुंआधार : पॉइंट टू बी नोटेड माय लॉर्ड, कहानी सुंदर है, इसका अर्थ कहानी की गलती नही, उसे पढ़ने वाले हो सकते.."
"ऑब्जेक्शन माय लॉर्ड" निरसतापूर्वक बिना कोई श्रम के अपना हाथ टेबल पर हल्के से पटकारते हुए वकील दुःस्वप्नदासने अपना विरोध दर्ज कराया, "पढ़नेवाले कैसे गलत हो सकते है, यह तो केस की दिशा ही बदल रहे है..!"
कठघरेमे खड़ी कहानी चुपचाप यह सब देख रही थी।
वकील दुःस्वप्नदासने अपनी बारी छीनते हुए भाव के पास जाकर सीधा ही पूछा, "क्या तुम कहानी को चाहते हो?"
भावने त्वरित अपना सर हाँ में हिलाया।
वकील दुःस्वप्नदास : "क्या तुमने अपना शत प्रतिशत सर्वस्व इस कहानी को सौंपा है?"
भाव ने पुनः हाँ में माथा हिलाया।
इस बार जजने धमकाते हुए कहा, "हाँ या ना मुंह से बोलो, वरना इस दंडेवाले को बोलकर तुम्हारी गर्दन दसो दिशाओं में घुमवाने का आदेश जारी करूँ?"
और भय उपजते कांपते भाव ने क्षमा याचना की।
वकील दुःस्वप्नदास : "तो जजसाहब, जब भावने अपना सर्वस्व सौप दिया इस कहानी को, और फिर कहानी अच्छा प्रदर्शन नही कर पा रही तो कहानी दोषी है।"
वकील धुंआधार के अपने साक्ष्य उसके ही विरोधपक्षमे जाकर बैठते नज़र आने लगे, जैसे वह यह केस हार जाएगा, अपने सारे तर्क पर इस दुःस्वप्न का आलस्य ही भारी पड़ता लग रहा था। कहानी उस कठघरेमें बिना कोई भाव के नीरसताको बिखेरती खड़ी थी। उसकी भावविहीन सुंदरता भी कम नही थी।
जजसाहब अपने पन्नो पर पेन चलाते हुए, "हाँ भई, किसीको कुछ कहना है अभी, देखो ये कहानी के केस को दो दिन की लाइमलाइट इनफ होनी चाहिए, फिर भी कल इसका फैसला सुनाएंगे, तब तक ओय फीके चितकबरे कुछ ढूंढ़के ला वरना तेरी कहानी तो जाएगी..जाएगी बार के भाव मे..!
और कहानी, भाव, ओर धुंआधार एक दुसरेके चेहरे को देखते रहे..!!
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समचारपत्रोंको फिर हेडलाइन मिल गई.. ज्ज्ने वकील धुंआधार को कहा "फीका चितकबरा"…