नहीं मतलब ये हो क्या रहा है..! मुझे वह तारीख बखूबी याद है, लेकिन मैं नहीं चाहता की जुबान पे आये..! तुम भी जानते हो पर फिर भी एक्सपेक्ट कर रहे हो, की मैं ये जताऊं की मुझे भी याद है...! क्यों? अगर मैं ऐसा नहीं करता हूँ तो क्या मेरी तुम्हारे प्रति की संवेदनाए कम हो जाती है? वैसे सच कहूं, में बस तुम्हारे साथ अपने आप को खिंच रहा हूँ, क्योंकि तुम भी जानते हो, पर मानते नहीं.. शायद तुम भी तो यही कर रहे हो..!
कोई था, जो कह रहा था, तुमसे अलग हो जाऊँ, पर फिर.. जिंदगी यही है..! हाँ, में पागल ही हूँ शायद.. जो पक्चर्ड टायर को भी घसीटे जा रहा हो..!
कभी कभी ऐसा भी तो होता है, की कहाँ फंस गए है, तुम और मैं दोनों ही। तुम मेरा ख्याल तो रख रहे हो पर बस बेमन से, शायद मैं भी..। हाँ दोनों ही अपनेमे उलझे है, पर जता नही पा रहे। लेकिन एक दूसरे को छोड़ भी नही सकते। शायद तुम्हे मेरी लत है, मुजे तुम्हारा व्यसन..
बौद्धिकता कहती है, संबंधमे एक दूसरे की संवेदनाए महसूस होनी चाहिए, पर क्या वह इतना जरूरी है? मुझे नही लगता, यदि हम एक दूसरे के प्रति समर्पित है, यदि हम एक दूसरे को इतना कॉम्फोर्टजोन दे पा रहे है, यदि हमे पता है की हम घुटन भी सह लेंगे तो फिर अलग क्यों होना है, काहे बिछड़न की शरण जाना? क्यों तड़पना, क्यों रोना-बिलखना? तुम मेरे दुःख में न सही सुख में तो साथ निभाओगे..! मेरा दुःख मैं बिना जताए सहन करना जानता हूं, शायद तुम भी तो जानते हो। बस तभी तो हम साथ है। लोग सोचते है प्यार हो तभी साथ रहा जाता है, पर तुम मेरी प्रेम की व्याख्या जानते हो, प्रेम अर्थात आकर्षण, जिम्मेवारी और जरूरत। तुम मेरी इस व्याख्या से पूर्ण नही किन्तु अंशतः तो सहमत हो ही..! हो न? में जानता हूँ, शायद पृथ्वी पर कोई भी मेरी इस व्याख्या को न मानता हो, पर तुम मानते हो। क्योंकि तुम मेरे साथ हो।
अक्सर मुजे खयाल आता है, हमारे वियोगी जीवन का, मैं कल्पना के महासागर में डूब जाता हूँ, शायद मैंने तुम्हें कहा भी था, मुजे उस दरिया में क्या क्या दिखा था।
"बस यही दो मसले जिंदगी भर ना हल हुए
ना नींद पूरी हुई ना ख्वाब मुकम्मल हुए...”