Sam Bahadur || Field Marshal Sam Hormusji Framji Jamshedji Manekshaw || aur kuchh baatein Lieutenant General Sagat Singh Ji ki..

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हाँ, तो देख ही ली, "सेमबहादुर.." कल शनिवार था, शाम को जल्दी ही फ्री हो गया था, तो में पत्ता, और बुधा चल पड़े सिनेमा फिल्लम देखने..!
एक वो जानवर जैसी "एनिमल" भी लगी थी, पर अपन को पूरी चूल थी सिर्फ और सिर्फ सेम देखने की..। लगभग काम से फ्री होकर आठ बजे घर पहुंच गया था, साढ़े-आठ बजे तक फ्रेश-व्रेश होकर निकल लिए सिनेमाहॉल की ओर। 

जब इंटरवल में वो 30 वाले मक्के के फुल्ले 250 में बेचते है वो लेने चल दिये, तब वहाँ एक और पहचान वाला मिल गया, पता चला एनिमल देख रहा है, तो मैने पूछ ही लिया, "हॉल भरा है या खाली?" उसने पूरे उत्साह से प्रत्युत्तर करते कहा, "एक सीट खाली नही है।" हालांकि लास्ट शॉ था पौने दस का रातवाला, और हमारी स्क्रीन में लगभग 30 सीट्स खाली पड़ी होगी..!

वैसे बहोत से लोग थे जो सेम को नही जानते..! हॉल से बाहर आते टाइम बहोत से लोग बता रहे थे, इनके (सॅमके) बारे में उन्हें कुछ पता ही नही है..! कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है ये।

अब करते है फ़िल्म की बात, कहानी कुछ यूं है कि, सेम पालने में झूल रहे होते है, नाम था 'सायरस', फिर सिन आता है, गोरखा की एक छोटी टुकड़ी सेम को सेल्यूट करती है, और सेम एक गोरखा जवान से उसका नाम पूछते है, फिर अपना.. जवान को नाम याद नही था, बस "सेम" याद आता है, ओर गोरखा के रिवाज मुताबिक पूरी ऊर्जा से प्रत्युत्तर करता है "सेम बहादुर"। फिर सेम मानेकशॉ की युवावस्था, विवाह, बर्मा युद्ध, जहा उनको गोलियां लगने के बावजूद ऑपरेशन थियेटर में डॉक्टरके पूछने पर जवाब देते हुए कहा थी कुछ नही हुआ, "गधे ने लात मारी थी" और उनके प्रमोशन तथा इन्क्वाइरीज़ के सीन्स आते है, फिर इंदिरा आती है, और शुरू होता है, प्रसिद्ध 1971 का युद्ध, जो आज तक पाकिस्तान की सबसे शर्मनाक हार, और विश्वयुद्ध के बाद सबसे ज्यादा युद्धबंदियो को पकडने का विश्वविक्रम(World Record)। युद्ध जितने के बाद सेम को फिल्डमार्शल का प्रमोशन मिलता है, और फ़िल्म खत्म होती है..। इस फ़िल्म में सबसे अच्छी है विकि कौशल की एक्टिंग, हालांकि उसे उरी फ़िल्म की मिल्ट्री प्रेक्टिस थी लेकिन इस फ़िल्म में उसने सेम की जो एक्टिंग की है, लगता है, जैसे सेम खुद ही हो, चलने के स्टाइल से लेकर बात करने का रवैया। मुछ से लेकर आंखे तक हूबहू करने का पूरा प्रयास, मान गए लेकिन, हालांकि मुजे फिल्मो में इतना इंटरेस्ट है नही लेकिन सेम के बारेमें मैं जानता हूं, और अधिक जानने को इच्छा थी, लेकिन जितना मैं जानता था, उसके अलावा इस फ़िल्म में कुछ भी नया नही था, सेम के वे प्रख्यात डायलॉग्स, "कोई कहता हो कि वो मौत से नही डरता तो या वह झूठ बोल रहा है या गोरखा है।" एक उनका हाजिरजवाबी अंदाज़, एक इंदिरा से नोंकझोंक, एक वो बात जो उन्होंने, डिफेंस मिनिस्टर मेनन से कही थी, "आज आप मुजे मेरे सीनियर के बारे में पूछ रहे है, कल मेरे जूनियर्स से आप मेरे बारे में पूछेंगे, यह आर्मी के डिसिप्लिन का भंग है, भविष्यमे कभी मत करना." इतनी बेबाकी से किसी को जवाब देना सेम अच्छे से जानते थे..! याह्या खान जो बाद में पाकिस्तान की गद्दी पर चढ़ बैठा था, उस के बारे में सेम ने कहा था की, "उसने मेरी मोटरसाइकिल के पन्द्रहसो नही दिए, तो मैंने उससे उसका आधा देश छीन लिया." लेकिन यह डायलॉग फिल्ममें था नही लेकिन न्यूज़पेपर कटिंग्स के माध्यम से दिखाया था और वह बहुविववादित बयान भी उसी कटिंगमे दिखाया गया जब सेम ने कहा था, "में बटवारे के वक्त पाकिस्तान चला गया होता तो आज पाकिस्तान जीतता.." 

मुजे कहानी में कुछ भी नया नही मिला, सिर्फ एक सीन था जो मुजे नही पता जिसमे दिखाया गया कि, कश्मीर के महाराज हरीसिंहजी जब भारतीय संघराज्यमे मिलने के लिए साइन करने वाले होते है, तब वी.पी. मेनन सेम बहादुर को साथ ले जाते है। हाँ एक्टिंग की दृष्टि से यह फ़िल्म मेरी पसंदीदा फिल्मोमे से सबसे ऊपर रखूंगा..! वैसे सेम बहादुर के बारेमें मैं लगभग मेरे कॉलेजकाल से जान रहा हूँ, क्योंकि मुजे मिल्ट्री पसंद है..! आर्मीमेन्स के किस्से मुजे अत्यधिक रोचक लगते है। मुजे लगता है ऐसी फिल्म्स और बननी चाहिए, लोगो को पता ही नही है, मानेकशॉ कौन थे? क्या उनका व्यक्तित्व था? कभी कभी तो लगता है, जो देश में राष्ट्रवाद की लहर दिखती है वह केवल और केवल डिजीटल तो नही है? बस वॉट्सऐप और रिल्स में ही भारत राष्ट्रके जयकारे लगाए जा रहे हो? क्योंकि जब तक तुम राष्ट्र के सच्चे हीरो को नही जानते और सिर्फ यह बोलिवुडके नाट्यकार अभिनेताओको हीरो मानते हो, तो वह राष्ट्रवाद की आशा धुंधली ही दिखाई पड़ेगी..!! 

मुजे लगता है, एक फ़िल्म और बननी चाहिए, जनरल सगतसिंघ की जीवनी पर, सगतसिंघ भारतीय सेना का ऐसा वीर योद्धा था जिन्होंने तीन अलग अलग देशोसे युद्ध किया था। वे शायद बीकानेरकी राजसेना में थे, बीकानेर रजवाड़ा था, उनकी सेना थी, उस सेनामें वे सेलेक्ट हुए, दूसरे विश्वयुद्धमे उन्होंने सेवाए दी, फिर जब भारत देश का निर्माण हुआ, बीकानेर भारतमे सम्मिलित हुआ, राजसेना भारतीय सेना बनी। गोआ को जब भारतमे मिलाने की बात आई, तब उन्होंने अपने शौर्य से पोर्तुगीज़ो से लड़ाई कर गोआ भारतमें मिलाया गया, फिर जब 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध हुआ, "यही जो सेम बहादुर में दिखाया है।" उस युद्ध मे भी सगतसिंघ ही थे जिन्होंने मेघना नदीको पार कर ढाका कब्जा लिया था। 1967में उन्होंने तोपे खोल दी थी चीन के खिलाफ.. नाथू ला पोस्ट का इतिहास कईओ को पता ही नही होता है, न कोई इनबारे में बाते करता है, हाँ एक मूवी जरूर बनी थी "पलटन" नाम से, लेकिन वो उतनी लाइमलाइट पा न सकी..!! सगतसिंघने जीवनमे पोर्तुगीज, पाकिस्तानी, और चीनी इन तीनो के खिलाफ मैदानी जंग करी है..! काश कोई बॉलीवुडिया इन पर फ़िल्म बना दे...!!!

वैसे सेम बहादुर आपने देखी? देखी है, तो बताइए आपको कैसी लगी, और नही देखी तो जाओ भाई, देखो..!

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