"बस चल रहा है.." या फिर "चलता है.."
यहीं लगता है की हाँ, अब वृद्धत्व का सोपान शुरू हो गया। जब प्रतिरोध करने से ज्यादा स्वीकार करने लगे..! मेरी मोटरसायकल का बायीं और का रिअर व्यू मिरर टूट चूका है, लेकिन चलता है... वह लड़का जो किसी दिन दुसरो की लड़ाई में दुर्बल का पक्ष लेता वह आज खुद के द्वंद्व में निर्दोष होकर भी स्वीकार कर लेता है, कोई बात नहीं होता है..! जब लगे के कपड़ो में क्यों इतना खर्च करना, सादा-सिम्पल ज्यादा अच्छा है, तब वह वृद्धत्व की और प्रयाण कर चूका है। दुसरो के प्रति आदर कर उनके पैर छूने वाले का जब किसीने पैर छुआ तब वह एक कदम पीछे हट गया था और हतप्रभ हो चला था। हाँ, वृद्धत्व की और वह गतिमान था। अब उसे अपने से ज्यादा अपनों की चिंता थी, अपने पर होने वाले खर्चो में वह कटौती करने लगा था, हाँ अब वह 'विचारशील' वृद्धत्व को कंधे पर ले बैठा था।
वैसे ये तीसी की उम्र भी कोई उम्र होती है? 90 के बाद जन्मे अपनी तीसीमें पहुँच चुके है, या पहुँच रहे है..! इस जमाने में तो अधेड़ ही मान लो.. जब आयुष्य ही साठ साल का गिने जाने लगा है तो तीसी अधेड़ अवस्था ही हुई... तीसी में सबसे बड़ी दिक्कत वहाँ आती है, जब तुम उसे स्वीकार नहीं पाते... अभी कल तक तुम दुसरो को अंकल या काका बुलाते थे, आज तुमसे छोटे तुम्हे बुलाने लगे, बहोत अजीब लगता है शायद...! पहली बार मुझे भी लगा था, लेकिन अब स्वीकार कर चूका हूँ। हाँ, क्यों विरोध करना? विचारशील है भाई हम..!
अभी कल-परसो 31st December गई.. मजाक क्या है पता है, हमारे ड्राई स्टेट गुजरात की पुलिस भी Breathalyzer से रात्रि में वाहनों को रोक रोक कर लोगो से फूंक मरवा रही थी..! सोचो पुलिस को कितना भरोसा है, की ड्राई स्टेट में भी लोग आल्कोहोल ग्रहण कर रहे है..! वैसे में पुलिसवालों पे दोषारोपण नहीं कर रहा, क्योंकि गुजरात में दारु पहुँचाने वाले इतने है जितना टोटल पुलिसबल नहीं होगा.. अरे राजस्थान का उदयपुर और आबू, केंद्रशासित दीव तथा दमण, और महाराष्ट्र की सीमाक्षेत्र की आय का प्रमुख कारण एकमात्र गुजराती प्रजा है..! एक तो आज कल दो दिन की छुट्टी मिले तो भी ये लोग गाडिया निकाल लेते है..! मेरे छोटे से शहर में भी दस-पंद्रह दिन पहले ही तीन करोड़ की किम्मत की शराब पर रोड-रोलर घुमा दिया था..! मुझे लगता है, दूसरे राज्यों को वह माल बेच देते तो कमसे कम ढाई करोड़ तो मिल ही जाते, वो डाल देते तुम पुलिसफंड्स में, या विधवा सहाय में दे देते, ये तो तुम लोगो ने गांधी के नाम पर बस दारु डिस्ट्रॉय करी.. हाँ थोड़ा विचारशील अधेड़ हूँ तो पैसे के बारे में भी सोच लेता हूँ..!
एक तरिके से दुनिया में न कुछ अच्छा है, न कुछ बुरा.. शायद हमारा द्रष्टिकोण ही निश्चय करता है..! दो लड़ते देश की प्रजा के लिए दोनों के अपने अपने पक्ष अच्छे है, और सामने वाले के बुरे.. और हम जैसे तीसरे वर्ग के लिए कौन ज्यादा अच्छा है, या कौन कम बुरा है, या फिर उन दोनों के झगड़े से हमे किससे लाभ होता है, और किससे हानि यही हमारा द्रष्टिकोण तय करता है..! विचार विचार होता है, सुविचार या कुविचार में अंतर हमारा द्रष्टिकोण करता है..! (अब मैं घुमा फिरा के प्रेम पर ले आता हूँ।) प्रेम पता नहीं कौन सी चिड़िया है, काली है या गोरैया.. ये हमारा स्वयं का ही द्रष्टिकोण कहेगा, ये तो वही बात है की अन्धो ने हाथी को छुआ, जिसने हाथी के पैर को पकड़ा उसने कहा हाथी खम्भे जैसा है, जिसने पूंछ पकड़ी, उसने कहा, नहीं हाथी तो रस्सी जैसा है... द्रष्टिहीन का भी तो द्रष्टिकोण होता है..! कथित प्रेम भी तो द्रष्टिकोण पर निर्भर करता है, एक कन्या अपने पिता की अवज्ञा कर भाग जाती है, अरे एक विवाहिता विवाह के दूसरे ही दिन मर्यादा को भंग कर भागती है, उससे भी बड़ी बात तो तब होती है, जब एक विवाहिता माँ बनकर भी परपुरुष से आँखे चार कर रही हो? केवल और केवल देह-विकार को पोषने का मार्ग है प्रेम.. अब कुछ नारीवाद के सिद्धांति कहे की सारे ही उदाहरण स्त्री के क्यों दिए, तो आपके कुसुम समान गाल पर एक विचारशील पंजे को छापते हुए कहता हूँ की संस्कारो सिंचन करना माँ का कर्तव्य है, संसार की उत्पत्ति जिसकी गोद में हो सकती है वह एक स्त्री है, पुरुष का कर्तव्य भी है किन्तु वह केवल बीजारोपण कर सकता है, उस उग रहे छोड़ को कैसे सींचना, और बड़ा करना एक स्त्री का कर्त्तव्य है, जब स्त्री अपने कर्तव्य को चूक जाती है तब एक निर्बल पुरुष समाज में आता है जो शायद समाज के अधोपतन का कारण बने..! फिर वही, कथित प्रेम, कथित प्रेमाधिकार, कथित व्यवहार और हाँ कथित दूषण..! हाँ वृद्धत्व को हांसल कर रहा विचारशील हूँ मैं..!
वैसे आज में विचारशील इस लिए हूँ क्योंकि, वह deep love के बाद किसीने एक इंटा फेंक के मारा था.. "आप विचारशील है.." तो लो फिर, देखो भाई.. सबसे कटु तो यह जीवन है, क्योंकि प्रेम से लेकर स्वप्न तक सब कुछ अस्थायी है, सब कुछ बदलता रहता है, जब भारत जैसे देश में एक जानवर जैसे मूवी देख कर रातोरात युवाओने अपनी कथित क्रश को रश्मिका से तृप्ति में कन्वर्ट कर लिया हो तो क्या ही कहे? संतोष थोड़े होता है, सहनशक्ति है किसीमें? प्रेमी जोड़े छोटी-छोटी बातो में ब्रेकअप कर लेते है, दम्पति जोड़े रात को बनी भिंडी की वजह से सवेरे कोर्ट पहुँच जाते है.. पुत्र-पुत्री के विवाह प्रसंग में समधी-समधन अपना भविष्य एक दूसरे की आँखों से साझा कर लेते है.. और आप कहते हो मैं विचारशील हूँ.. नहीं मित्र! मैं मुर्ख हूँ जो बस प्रेम के प्रति आलोचना करता रहता हूँ अपना कथित दुःद्रष्टिकोण के बंधन में सबको उलझाता रहता हूँ... रुकता कोई नहीं है, सब बस किनारे से मेरे जाल को देखकर हँसते है, चले जाते है..! जैसे अयोध्या को देखकर मथुरा की उपेक्षा कर रहे हो.. त्रेता वाले की खुशीमे द्वापर वाले को भूल रहे हो.. हाँ, मैं कदाचित विचारशील तो हूँ..!!
कुसुम समान गाल पर एक विचारशील पंजा....वाकई विचारशील तो हैं आप !! 😂🤣
ReplyDeleteबहोत बहोत शुक्रिया..!!
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