हाला महेरामण अजाणी || HALA MAHERAMAN AJANI, JAM RAWAL || BATTLE OF MITHOI ||

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हाला महेरामण अजाणी 

हाला महेरामण अजाणी, पट्टी घोड़ी, तथा करशन जांबवेचा


दोपहरकी तेज किरणे जलाशय से प्रतिबिंबित होकर प्रकृतिका क्रुद्ध चित्र बना रही थी। एक अश्वसवार युवक इस जलाशय के किनारे रुका, अपने आयुधो को किनारे वृक्षकी छाया तले रखकर, अपनी प्राणप्रिय घोड़ी के साथ जलाशयमें उतरा..! सोलह की ही आयु रही होगी उसकी, वह अपनी प्राणप्रिय घोड़ी पर हाथ फिराते नहला रहा था और बड़े ही प्यार से पुचकारते अपनी चार सालकी बछेड़ी को "पट्टी नहा ले.." कहते ही घोड़ी भी समझ गई हो ऐसे हिनहिनाइ..!

युद्धभूमिसे कुछ ही दूर इस जलाशय पर वह विचारमग्न स्थितिमे पानी में एकमात्र धोती पहन कर उतरा, नहा कर किनारे पर बैठा विचार कर रहा था, कल ही तो वह अपने पिता से हठ करके इस युद्धभूमिमें आया था, उसका सुकुमार शरीर देखकर उसके पिता उसे युद्धभूमिमे भेजना नहीं चाहते थे। राजसी वैभवमे पला वह कुमार वह अपना शौर्य दिखाना चाहता था, आखिरकार उसके पिता भद्रेश्वर के जागीरदार हाला अजाजीने उसे जाने दिया। लेकिन यहाँ भी तो उसका स्वागत कवचनो से ही तो हुआ था। उसके आते ही जाम रावलने उसकी कुमारावस्था पर कटाक्ष करते कहा था की, "यहां तो तलवारे चलेगी, बच्चो का क्या काम, लड्डू थोड़े खाने है?" लेकिन वह पिता समान जाम को प्रत्युत्तर दिए बिना चुप ही रहा था यह सोचकर की रणमेदानमें अपने भुजबल से ही अपना सामर्थ्य और प्रत्युत्तर दोनों एकसाथ ही प्रदर्शित किये जाए।

मिठोई की भूमि रक्तरंजित होने जा रही थी, एक तरफ देशदेवी आशापुरा के आशीर्वाद से कच्छ से आए जाम रावल ने सौराष्ट्रमें आकर मोराणाजोडिया और आमरण परगने देदाओ से, धुसलपुर(ध्रोल) चावडाओंसे, और नागनाथ बन्दर नाग जेठवा को हराकर एक विशाल प्रदेश जीतकर अपने दादा के नाम से विजित प्रदेश को हालार नाम दिया। धुसलपुर की जागीर अपने अनुज हरधौल को दी थी, वहाँ हरधौलजी ने अपने अपने नामसे ध्रोल बसाया। नवानगरकी नींव रखकर जाडेजाओ की शौर्यगाथा स्थापित की थी। जाम रावल को और आगे बढ़ते रोकने के लिए भाण जेठवा, ओखा का वीसा वाढेर, जूनागढ़का बाबी पठान एक पक्षमे होकर अहमदाबाद के सुल्तानसे मिली तोपों से जाम के पैर उखाड़ने में लगे थे। मिठोइके पास सपाट भूमि पर दो सेनाए अपने तम्बू लगा कर बस युद्ध-आदेश या समाधान का इंतजार करती बैठी थी..!

बीते दिनोमे अहमदाबाद की तोपोने जामकी सेना को परेशान करके रख दिया था। जाम के वजीर नोंघण के मशवरे पर जामके तंबुमे सभा भरी गई, बीड़ा घुमाया गया की कुछ भी करके दुश्मनोकी तोपें निष्क्रिय करनी है..! तोगाजी सोढा नामक वीरने बीड़ा उठाया, रात्रि के समय यात्री के स्वांगमें तोगाजी और उसके साथ आए दो जाडेजा वीर रणसिंह और रवाजीने दुश्मन सेना में प्रवेश पा लिया और जैसे तैसे तोपों तक पहुँच कर बहुत सारी तोप में कील जड़कर निष्क्रिय कर दी, दुश्मन सेना को पता चला, एक साथ कई तलवारे उन तीन योद्धाओ पर पड़ी। कार्यसिद्धि के साथ साथ अपने शरीर पर असंख्य घाव लिए वह योद्धा तोगाजी जब रावल के समक्ष प्रस्तुत हुआ तब जाम रावल कह उठे,

"रावळ कहियो रंग है, तोगा तुं अणतोल,
तो विण बीजो कुण तके, करवा मोत कबूल"

इस बार जाम की शत्रुसेना में भाण जेठवा के तंबुमे बीड़ा घुमाया गया, जाम रावलको मारने का बीड़ा..! जाम रावल को मारते ही यह युद्ध समाप्त हो जाएगा, लेकिन उस बलशाली जाम को मारे कौन? आखिरकार करशनजी जांबवेचा नाम के योद्धा ने यह साहस करने की ठानी। कार्य कठिन था, वह अश्व पर सवार होकर अपने भाले पर श्वेत कपडा बांधकर सन्देशवाहक बनकर जाम के तंबू के नजदीक जा पहुंचा। जाम सो रहे थे, और तंबूके बहार ही जाम रावल के अनुज हरधौलजी नहाने की तैयारियां कर रहे थे। वहां पहुँचते ही करशन जांबवेचाने जाम रावल को हाथोहाथ यह संदेशपत्र देने की इच्छा जताई। हरधौलजीने शंका होने पर स्वयं ही जाम रावल है ऐसा कहकर पत्र माँगा। आसपास खड़े पहरेगिरोके मध्य हरधौलजी को चांदी के बाजोट पर नहाने बैठा देख और प्रचंड बलिष्ट शरीर को देखते करशन उन्हें जाम रावल समझ बैठा, पत्र दिया। हरधौलजी पत्र खोल पढ़ने लगे, पहरेगिरो का ध्यान भी पत्रमें गया, और यह श्रेष्ठ मौका देखते ही करशनने आंखके पलक झपकते समय मात्रमे अपना भाला हरधौल की छाती के पार कर दिया। 

"दगा-दगा-दगा" चारो ओर आवाज गूंज उठी, हो हल्ला हो गया, किसी को कुछ समझ आए उससे पहले करशन अपने अश्व पर सवार हो कर भाग चला..! जाम रावल अपने तंबूसे बहार आए, भाई की स्थिति देखी, एक ही आदेश चारो और फ़ैल गया, "पकड़ो, दुश्मन भागकर जाने न पाए।" जाम रावल स्वयं अश्व पर सवार हो कर करशन के पीछे पड़े.. 

जलाशय पर बैठा वह युवक जाडेजा वंशकी हाला शाखा का महेरामण था। उसे यह कोलाहल सुनाई पड़ा, जाम रावल को एक अश्व सवार का पीछा करते देख मामले की गंभीरता समझ गया वह। त्वरित गति से उसने अपनी सांग संभाली घोड़ी पर सवार होते ही बिजली की गतिसे करशनका पीछा करने लगा..! आगे तीव्र गति से भागता करशन, पीछे हाला महेरामण, उसके पीछे खुद रावल जाम। करशनभी एक श्रेष्ठ अश्वसवार था, अपनी गति को उसने इतना तीव्र किया की कोई उसके नजदीक भी नहीं आ पा रहा था। महेरामणने थोड़े दूर एक नाला देखा, करशन नाले की बाजू से पसार होने धीमा हुआ, लेकिन महेरामणने पट्टी को इशारा करते ही नाले से कूद गई, और करशन के आगे खड़ी हो गई, महेरामणके मननमे एक ही बात घूम रही थी, युद्धभूमि बच्चो के लिए नहीं है.. पट्टी की तंग खींचते ही वह अपने पिछले पैरो पर खड़ी हो गई, महेरामणने अपनी सांग उठाई, सुकुमार के मुखमण्डल पर क्रोधाग्नि छा गई, आंखोसे जैसे लावा बह रहा हो ऐसी लाल हो चुकी थी, पूर्ण बाहुबल का प्रयोग करते उसने सांग चलाई, करशन तथा उसके घोड़े समेत भेदती वह सांग जमीनमे खूंप गई..!

पीछे आ रहे रावल जाम तथा कुछ सैनिकोंने यह दृश्य देखा, सभी हतप्रभ हो चले थे। ऐसी वीरता, ऐसा साहस, वह भी एक कुमार के हाथो.. अत्यंत वेगपूर्वक प्रहार करने से महेरामण की आँखे बहार को आ गई थी, और उसकी प्राणप्रिय पट्टी की पैर की खाल घुटनो तक चढ़ गई थी। जाम रावल कवि तो नहीं थे पर उनके मुख से कुछ शब्द निकले,

"हालाजी तारा हाथ वखाणु, के पट्टी तारा पग वखाणु..." 

"ब्रीद रावळ बिरदावियो, रंग क्षत्री महेराण,
पाणी रखियो आपरो, सरसध मेर परमाण"
(जाम रावल प्रसंशा में करते कहते है की, हे शुद्ध क्षत्रिय महेरामण, क्षात्रवट की लाज तुमने रख ली है, तुम मेरु पर्वत समान प्रसिद्द हो।)

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जाडेजाओ का वंश वृक्ष

(कच्छ में ई.स. 1385 में राता रायधणजी की मृत्यु पश्चात उनके चार पुत्रो में ओढ़ाजी गद्दी पर बैठे, होथीजी को बार-बाँधा का गिरास (जागीर) मिला, देदाजी कंथकोट की जागीर पर आए, और गजणजी बारा-तेरा की जागीर पर..! हालाँकि वर्षो पश्चात गद्दी तथा प्रथम-जाम की पदवी के लिए गजण और ओढ़ा वंशमे संघर्ष हुआ था, ओढ़ाके वंशमे हुए हमीरजी को मारकर गजणवंश के रावळने गद्दी कब्ज़ा ली थी, लेकिन ऐसा माना जाता है की माता आशापुरा रुष्ट हुई, रावल ने आराधना की, आशापुरा माता ने उसे सौराष्ट्र पंथक दिखाया। सौराष्ट्रमें प्रयाण कर धीरे धीरे जाम रावळने अपनी सत्ता बढ़ाई, और विक्रम संवत १६०६मे सौराष्ट्रके राजाओंने जाम रावल पर संयुक्त हमला किया और मिठोईगाँव के पास युद्ध हुआ, जाम रावलने तोपों से तलवारे लड़ाकर वह युद्ध जीत लिया और भारत की आज़ादी पर्यन्त वह 'हालार भूमि' जाड़ेजाओ की ही रही...! गजणवंश में हुए हालाजी से हाला शाखा चली, वींजाण में स्थापित हुए हाला अजाजी गुंदियाळी आए, और बाद में भद्रेश्वरमे स्थायी हुए, अजाजीके पुत्र मेरामण मिठोइके युद्धमे हिस्सा लेने गए थे। मिठोईके युद्ध के उस प्रसंग के पश्चात हाला मेरामणजी को पालखी में ले जाकर उनकी सारवार की गई। जब जुलाई 1591 तथा विक्रम संवत 1648में पुरे गुजरातके इतिहास का सबसे रक्तरंजित जाम रावल के पौत्र जाम सताजी (सत्रसाल / शत्रुशल्य) का अकबर के भेजे मिर्ज़ा अजीज कोका के विरुद्ध 'भूचर मोरी का युद्ध' हुआ, तब हाला महेरामण अपने पुत्र-पौत्रादि के साथ वीरगति को प्राप्त हुए थे।)

यह पचास फूट की लम्बाई का स्थान माना जाता है जो 'पट्टी' घोड़ी कूदी थी।

।। अस्तु ।।

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