शिवसिंह चुडासमा - धोलेरा सत्याग्रह || SHIVSINH CHUDASAMA - DHOLERA SATYAGRAH - SAVINAY KAANUNBHANG ||

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|| शिवसिंह चुडासमा ||


"नहीं छास छमको ने छांयडो, केताक अवगुण कहूं,
भूंडामां भलु एटलु, भाल निपजे घऊं...।।"

मानचित्र में गहरी रेखा में चिन्हित भाल प्रदेश

जहाँ छाँव देने वाले वृक्ष नहीं उगते, जहाँ हरी सब्जी नहीं मिलती, और छाछ भी नहीं.. ऐसे अवगुणो से भरे इस भाल प्रदेश का सबसे अच्छा गुण है की यहां गेंहू उगते है..! यदुवंशी चुडासमाओ का भाल। ग्यारहवीं शताब्दी में जूनागढ़ के राजा रा'नवघणके पुत्र भीमजी के वंशज गिरास (जागीर)मे मिले भड़ली के बाद भाल प्रांतमें गोरासुमे राजगद्दी स्थापित कर बसे थे। भारत की आज़ादी पर्यन्त गांफ तथा भाल प्रदेश चुडासमाओ के हस्तक रहा था। 

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6 April 1930 को जब महात्मा गांधीने दांडीकूच की और नमक के ढेर में से एक चुटकी नमक उठाकर नमक का कानून तोडा, उसी समय भाल के धोलेरा में भी नमक का सत्याग्रह चल रहा था..! अमृतलाल शेठ के नेतृत्वमें २१ सत्याग्रही वहां नमक पर लागू हुए कर के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे थे। अंग्रेजी पुलिस उन सत्याग्रहीओ पर लाठियां बरसा रही थी।

"तुम्हारे पास जो डंडा है उसे बाजूमें रखकर सामने आओ तो पता चले, इस तरह निःशस्त्रो पर डंडा चलाना तो जुल्म है।" खादी का पेंट ऊपर बंडी पहना एक व्यक्ति अपनी बड़ी बड़ी मुछो पर ताव देता आगे आया तब सत्याग्रहीओ पर डंडे चला रहा अंग्रेजी पुलिसबल एक क्षण को रुक गया। एक अंग्रेज अफसर आगे आया और उसने पूछा "तो तुम अपनी ताकत दिखाना चाहते हो?" और पास खड़े अपने अंग्रेज मित्र की और देखकर मुस्कुराया।

"हाँ, अगर तुम देखना चाहते हो तो आजमा लो, यह मेरी मुट्ठी में नमक है इसे खोलो और ले लो।"

अभिमान में चूर अंग्रेज अफसर ने कहा, "और हमने यह मुट्ठी खोल दी तो क्या सजा करे..?"

"आप जो दे सको वह यातना मैं सहने को तैयार हूँ।"

मध्यान्ह के आदित्यकी किरणे उस वीर के मुख़ातेजमे अभिवृद्धि कर रही थी, उसकी भुजाए सिंह के समान थी, अधखुले देह की शौष्ठवता और कसरती शरीर उसके आत्मविश्वास को प्रकट कर रहा था। अंग्रेजी पेण्ट, शूट और हाथमे डंडा लिया एक अंग्रेज आगे आया, अपने साथी को डंडा सौंप कर उसने दोनों हाथो से मुट्ठी खोलने को जोर लगाया, समुद्रके किनारे आ रहे ठन्डे पवनो के उपरांत भी उस अंग्रेज के पसीने छूट गए। अपनी जेब से रुमाल निकालकर मुंह हाथ पोंछकर उसने एक और प्रयत्न किया किन्तु निष्फलता के उपरांत कुछ प्राप्त हुआ नहीं। यह देखकर अपने दांतो को भींचकर दूसरा अफसर आगे आया, अपनी सर्वशक्तिओ को आजमाने के उपरांत भी वे दोनों एक नमक से भरी मुट्ठी न खोल पाए। 

दोनों अंग्रेज हांफ गए और रुक गए। उस वीर ने मनमे मुस्कुराते एक और पासा फेंका, "चलो आपको एक और करतब दिखाते है, मैं यहां बैठकर अपनी दोनों हथेलिया जमीन पर रखता हूँ, आप दोनों एक एक हथेली पर खड़े हो जाओ, मैं आप दोनों को उठाते हुए खड़ा हो जाऊंगा, और हाँ आप एक दूसरे को पकड़कर रखना कहीं गीर न जाओ।" और वह दोनों हथेली जमीनपर खोलते बैठ गया।

अचंबित हो रहे अंग्रेज अफसरों की आँखे चौड़ी हो गई। हथेली पर एकसाथ हम दोनों को कैसे उठा पाएगा? उसकी इस आत्मविश्वास भरी चेष्टा को बस डींगे समझ रहे वे दोनों अंग्रेजोने अपनी भाषा में एक दूसरे से कुछ बात की, और बूट उतारकर हथेलियों पर खड़े हो गए। "ध्यान रखना" कहकर वह मल्ल समान वीर खड़ा हो गया। जैसे बनिया तराजू तोलता है, वैसे ही दोनों हाथ सीधे कर उसने दोनों अंग्रेजो को हथेलीमे उठा लिया था। आसपास सब यह नजारा देखते स्तब्ध थे। कुछ आशंका कर रहे थे की अब अंग्रेज ज्यादा लाठी बरसाएंगे। कुछ अभी भी अपनी आँखों पर यकीन नहीं कर कर पा रहे थे। धीरे से उसने दोनों अंग्रेजो को निचे उतारा और कहा,

"मैं मजबूर हूँ साहब, क्यूंकि हमारे नेता गांधी का अहिंसा का आदेश है, वर्ना आप दोनों को तो मेरी दोनों बगलमे दाब कर तीन मील दौड़ जाऊं।"

आश्चर्यमें गरकाव अंग्रेजोने प्रत्युत्तर में फिर से बस लाठिया ही बरसाई। वह वीर थे चेर गाँव के शिवसिंह चुडासमा, अपनी उम्र के चालीसी के पड़ाव में वे पूरी तरह गांधीजी के रंग में रंगे थे,जब धोलेरा सत्याग्रह की घोषणा हुई तो उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। और धोलेरा सत्याग्रहमे सविनय क़ानूनभंग की लढत में अपना अहिंसापूर्ण योगदान दिया था।

सौराष्ट्र पत्रिका में छपा "चलो धोलेरा"का नारा

(भारतमे गांधीजी के नेतृत्व में सविनय कानूनभंग की लढत शुरू हो चुकी थी, अमृतलाल शेठ ने गुजरात प्रान्तिक कांग्रेस से अनुमति ले कर भाल स्थित धोलेरा बंदरकी दरियाई खाड़ी से नमक पर लगे कर के विरुद्ध प्रदर्शन का निर्णय लिया। तदनुसार मोहनलाल मेहता, वजुभाई शाह, मनुभाई जोधाणी और जवेरचंद मेघाणी द्वारा भावनगर, मोरबी, गोंडल, पोरबंदर, अमरेली, कोडिनार से सत्याग्रहीओ को आमंत्रित किया गया, समग्र सौराष्ट्र में "चलो धोलेरा" का नारा दिया गया। 6 अप्रैल 1930 के दिन 21 सत्याग्रही अमृतलाल शेठ के नेतृत्व में धोलेरा समुद्रतट तक पहुंचे और "इन्किलाब ज़िंदाबाद" की घोषणा की, पुलिस की हाजरी में नमक उठाकर क़ानूनभंग किया। पुलिस द्वारा दमन और धरपकड़ हुई, अमृतलाल शेठ पर केस चला कर ढाई साल की कैद सजा की गई। 13 अप्रैल 1930 के दिन बलवंतराय मेहता के नेतृत्वमे एक और सत्याग्रह कर नमक का क़ानूनभंग किया गया। बलवंतराय मेहता को भी दो साल की जेल हुई। लगभग डेढ़ महीने चले सक्रीय सत्याग्रहमे मणिशंकर त्रिवेदी, देवीबहन पट्टणी, भीमजीभाई, वजुभाई शाह, मोहनलाल मेहता, आदि अग्रणीओ के जेल में जाने के उपरांत भी लढत चालू रही। पुलिसने धोलेरा, धंधुका, बरवाळा और राणपुर की सत्याग्रही छावनीओ पर छापे मारे, सत्याग्रहीओने धोलेरा के स्मशानमे छावनी शुरू की। लगभग आठ महीने चले इस सविनय क़ानूनभंग के सत्याग्रह दरमियान पुलिसबलने आमनवीय अत्याचार किए थे। 


धोलेरा के सत्याग्रही

जवेरचंद मेघाणीने धंधुका अदालत में 'आयरिश वीर मेक्सविनि' के उदगार पर स्वरचित काव्यग्रंथ 'सिंधुड़ो' में से बुलंद आवाज़मे गीत गाकर मजिस्ट्रेट समेत सबको गद्गदित कर दिया था। आख़िरकार 1931 मे गांधी-इरविन करार के बाद यह आंदोलन समाप्त हुआ।)

'सिंधुड़ो' के गीत ललकारते 'जवेरचंद मेघाणी'


|| अस्तु ||

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