।। जब वढवाण के राजवी झाला दाजीराजजी ने अंग्रेज अमलदार का अभिमान उतारा।।
लाल कमलकी रजसे तरबतर तालाबके पानी में उठते तरंग सम उषा के तेजकिरण पृथ्वी पर पादुर्भाव हो रहे थे। चन्दन वृक्षोंके वन से विचरते वसंत के वायु मौसममे ठंडक ला रहे थे। वढवाण नगरके धोळी पोल का दरवाजा ध्वज-पताकाओ से शोभायमान था। राज के दीवान और अमीर-उमराव दरबारी दबदबेमे आकर खड़े थे।
पिले पट्टे वाली टोपी पर सफेद पंखकी कलंगी, भरावदार दाढ़ी, ढाल जैसी छाती पर हरे कॉट पर पित्तल की जंजीर पर वढवाण का राज्यचिन्ह, कंधे पर ज़िंक भरी दुनाली, हाथमे भाला, भाले पर तीन पट्टे वाला ध्वजधारी अश्वसवारो की एक लंबी कतार भोगावो नदीके किनारे से लेकर गढ़ के दरवाजे तक लगी है। साथमे ही लाल-पिले रंगकी कॉलर में सज्ज पुलिस पल्टन भी खड़ी है।
बात कुछ यूँ थी की वढवाण की मुलाक़ात हेतु गोरा प्रान्त अधिकारी आने वाला है। अंग्रेज अफसरके स्वागत हेतु राजदरबारका सर्व रिसाला खड़े पैर था। वढवाणनरेश दाजीराजजी अपने चंद्रमहल के दरवाजे पर दो अश्व-बग्गियाँ तैयार रखके अंग्रेज अफसर का स्वागत करने धोळी पोल दरवाजे तक स्वयं जाने को तैयार थे। गोरे अफसर के आने का समय बीत जाने पर भी कोई समाचार नहीं मिला तो एक आदमी को खबर लेने दौड़ाने वाले ही थे उतने में अरबी अश्व पर सवार गोरा अफसर सीधे दरवाजे पर ही आ पहुंचा ऐसा समाचार दरवान ने दिया।
दरवान की बात सुनते ही आस्चर्यचकित दाजीराजजी प्रोटोकॉल के बारेमे सोच रहे थे, तभी अंग्रेज अफसर के शिरस्तेदारने आकर कहा, "साहब आये है और आपसे मुलाकात की इच्छा है।"
दाजीराजजी ने सवाल किया, "अपनी बात हुई थी की साहब का स्वागत धोळी पोल दरवाजे पर निश्चित किया था, राज्य के सब लोग वहाँ आतुर खड़े है, आप किस रस्ते से आए?"
"खांडी पोल दरवाजे से।"
"कारण?"
"साहब की मर्जी"
सुनते ही युवा राजा का रूपरंग बदलने लगा, देवदूत जैसे राजवी के हृदय में आक्रोश उठा।
"ऐसे रास्ता बदलकर आना मेरे राज्य का अपमान है। और मेरे राज्य का अपमान करने वालो से मैं मिलता नहीं।" इतना कहकर वढवाणनरेश चंद्रमहल की सीढिया चढ़ते वापस लौट गए।
राज दाजीराजजी का जवाब शिरस्तेदारने प्रान्त अधिकारी अंग्रेज अफसर को सुनाया। चुटकीभर राज्य के राजा का ऐसा प्रत्युत्तर सुनकर सागर सामान शाही सत्ता का सामंत आगबबूला हो उठा। उसकी भूरी आँखों से उठी क्रोधकी लपटे चंद्रमहल पर टिक गई। अपना अश्व मोड़कर सीधा वढवाण केम्प की कचहरी जा पहुंचा। कलम उठाई, सरकारी मोहरवाले कागज़ पर पूरी आग उतारकर कापड़की थैलीमे बांधके सील लगाई और स्वयं ही राजकोट की अंग्रेजी कोठीमे बैठे पोलिटिकल एजेंट को सौंप आया।
काठियावाड़ पोलिटिकल एजेंट इस पत्र को पढ़ते ही क्रोधायमान हो उठा, वह भी वढवाण जैसा छोटा राज्य जानकर गुस्सा सातवे आसमान पर जा चूका। उसे यह अपमान प्रान्त अमलदार का नहीं पर स्वयं गोरे शहंशाह का लगा, पर कैसे भी उसने समता बनाए रखी। जल्दबाजी में कोई कदम उठाने से पहले उसने वढवाणनरेश से पुरे मामले के स्पष्टीकरण का पत्र तैयार करवाया।
पत्रमे लिखा गया, "नामदार सरकार के कर्मचारी का आपके द्वारा किए गए अपमान से सरकार बहुत नाखुश है। यह व्यव्यहार उचित नहीं है। इस मामले पर सरकार योग्य विचार कर कार्यवाही करना चाहती है, इस बाबत पर आपका क्या स्पष्टीकरण है वह त्वरित ही पत्र माध्यम से सूचित करें।" स्पष्टीकरण का खत लेकर एक संदेशवाहक वढवाण पहुंचा। राजकोटकी कोठी से आया पत्र पढ़कर राज दाजीराजजी ने स्पष्टीकरण पत्र लिखा।
"सरकार के नियमानुसार सरकारी अमलदारको देशी राज्य की मुलाकात के समय निश्चित किए गए मार्ग पूर्ण सभ्यता के साथ आना चाहिए। कोई खास प्रसंगमे मार्ग बदली हेतु पहले से राज्य को सूचित किया जाना चाहिए। प्रान्त अधिकारी साहब द्वारा श्री सरकार द्वारा सूचित उपरोक्त नियमो का पालन इस प्रसंग में हुआ नहीं है। प्रान्त अमलदार के ही सूचित किए धोळी पोल के दरवाजे पर मेरे कामदार तथा दरबारी मौजूद थे, में स्वयं भी उनके स्वागत को प्रस्थान कर रहा था। लेकिन प्रान्त अधिकारी अचानक किसी अन्य रास्ते से आ पहुंचे, इस कारण हमे, हमारे राज्य के अमलदार, तथा इस स्वागत हेतु लगाए गए कामदारो के समय का व्यय हुआ है। प्रान्त अमलदार एक उच्च कक्षा के अमलदार होते हुए भी इन बंधारणीय सूचनाओं पर अमल नहीं कर रहे है। उनका यह बर्ताव मेरा तथा हमारे राज्य के अपमान समान है। इस तरह अचानक ही चोर की भाँती आने वाले को मैं मुलाक़ात का समय नहीं दे पाउँगा। तथा मुलाक़ात देना भी उचित नहीं समझता।"
अंग्रेजी कोठी की दीवारों को बिंधता वढवाण राज का पत्र राजकोट पहुंचा।
पत्र पढ़ते ही एजेंट अचम्भे में रह गया। राजा की बात बंधारण के अनुसार थी। बंधारण के विरुद्ध व्यव्हार करने वाले उस प्रान्त अधिकारी को कसूरवार मानकर उसे डांट लगाई गई।
20 जनवरी 1861 को जन्मे यह निडर तथा प्रजावत्सल राजवी दाजीराज जी दिनांक 13 जुलाई 1881 के शुभ दिन वढवाण की गद्दी पर आए थे। दाजीराज जी का विवाह लाठी के राजकुमारी बाजीराजबा के साथ हुआ था। किन्तु अपनी भरयुवानीमें दिनांक 5 मे 1885 के दिन उनका निधन हो गया।
लेखक : 'दौलत भट्ट' की कॉलम 'धरतीनो धबकार' का हिंदीमें अनुवाद।
वढवाण राजध्वज |