दक्षिण अफ्रीका में पराक्रम का परिचय देने वाले भावनगर के सपूत 'हनुभा चुडासमा' || Hanubha Chudasama || Bhavnagar State Lancers ||

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दक्षिण अफ्रीका में जंग में फँसी अंग्रेज सरकार को मदद हेतु भावनगर नरेशने 150 अश्वसवार योद्धाओ को हनुभा के नेतृत्व में भेजे थे।

Bhavnagar State Lancers Coat of Arms 

प्रगाढ़ निंद्रा में सोइ कमलदण्डिका को स्वप्न में आए हुए सह्रदयी स्वामी समान सूर्य, पूर्व के अवकाशी प्रांगण में पधारकर, प्रीत की पालव में परवश बनी प्रेमिका की रात रात भर से जगी आँखों में आई लाली जैसा लाल रंग रेला रहा था। पंखीओने अपने घोंसले छोड़ दिए थे, ऐसे समय पर कंथारिया में विदाय के वाजिंत्र बज रहे थे। ढोल-तांसे धमक रहे थे, फूलमाला महक रही थी। हनुभा को केसर का तिलक किया जा रहा था। देवकन्या समान बच्चिया हनुभा को जल्द ही विजय वरन कर वापस लौटने को कह रही थी। समस्त वागड़-कंथारिया गाँव की सीमा पर बिदा रकने खड़ा था। और चपल अश्व पर सवार होकर यदुवंश की चुडासमा शाखा के राजपूत हनुभा के चेहरे पर बड़ी बड़ी मुछे, कंधे पर दुनाली बन्दुक, छाती पर लोखंडी बख्तर, पुरे लश्करी लिबास में सज्ज सैनिकने अश्व को एड़ी मारी। 

दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेज सरकारने युद्ध छेड़ा था। सरसेनापती फिल्ड मार्शल अर्ल किचनर खुद ट्रांसवाल के मोर्चे पर मर्दानगी का मंडप डाले बैठा था। भारत के देशी रजवाड़े किचनरकी मदद कर रहे थे। उस समय भावनगर के भूपाल भावसिंहजी का हनुभा पर आदेश छूटा, "किचनर की सहाय हेतु ट्रांसवाल पहुंचो।" महाराज भावसिंहजी का आदेश सरआंखों पर चढ़ाकर चुडासमा राजपूत हनुभा डेढ़सौ घुड़सवारों को भावनगर बंदरगाह से जहाज में चढ़ाकर ट्रांसवाल की धरती पर पैर रखने हेतु पानी-पंथ काटने लगा। 

Colonel H.H. Maharaja Raol Shri Sir Bhavsinhji II Takhtsinhji Sahib, Maharaja of Bhavnagar, KCSI

आफ्रिका की धरती पर अगन ज्वालाएँ धधक उठी थी। अपार सोने का उत्पादन करने वाली भूमि के चारो सीमाए सुलग रही थी। रण संग्राम के शंख फूंके जा रहे थे। अंग्रेजी सेना दुश्मनो का नाश करते आगे बढ़ रही थी। वागड़-कंथारिया का हनुभा हृदयमे जुस्सा भरकर, लार्ड किचनर से कदम से कदम मिलाता, दुश्मनो को आँखे दिखाता, मर्दानगी की मशाल का प्रकाश बिछा रहा था। बंदूकों की गोलियाँ अपने लक्ष्य को साधने में लगी थी, पराजित हो रहे शत्रु शूरवीरता की ज्योत अखंड रखने हेतु मैदान में जंग खेल रहे थे। सेनापति लोर्फ किचनर आगे ही आगे कूच किये जा रहा था। भावनगर के डेढ़सौ अश्व ट्रांसवाल की धरती में अपने मजबूत पैर गड़ाते आगे बढ़ रहे थे। चकोर चुडासमा की आँखे चारो दिशाओ को भांप रही थी। जिसके सर पर हिन्द के हाकिम की रक्षा की जिम्मेवारी हो वह किचनर के सर का बाल भी बांका न हो उस हेतु हनुभा शत्रु के व्यूह तोड़ता किचनर के आगे ही रणसंग्राम खेल रहा था। 

ट्रांसवाल के आसमान से अरुण अपना उजियारा वापस लपेटकर संध्या के पश्चिमी छोर पर उतर रहा था। रक्तरंजीत धरती सूर्य के अंतिम किरणों को जैसे हथेली में लेकर मुट्ठी बंध कर रही हो। लाशो के ढेर में घायल सैनिको की चीत्कार उठ रही थी। कलेजा कंपायमान कर दे ऐसी चीखे बिच में से 'धड़ाम... धड़ाम...' छूट रही बंदूकों के गोलियों की आवाज के तले दबी जा रही थी। उतने में कही से किचनर के मौत का लक्ष्य लिए शत्रु की बन्दुक से गोली छूटी, चुडासमा ने किचनर का खात्मा करने आ रही गोली को अपने बख्तर पर लेकर किचनर की जान बचा ली। यह देखते ही किचनर भावविभोर हो उठा, हनुभा को गले लगा लिया। किचनर की आँखे आभार-भाव से भीग गई थी। 

भावनगर राज्य को विश्व-विख्यात करने वाले हनुभा रणछोड़जी चुडासमा को राजदरबार में तलवार और जागीर भेंट कर सम्मानित करते हुए बहादुरी के बखान किये गए थे। अंग्रेज सरकार द्वारा भावनगर राज्य का युद्ध-मदद के लिए धन्यवाद किया गया। 

यह प्रसंग ई.स. 1905में हुआ था। प्रथम विश्वयुद्ध के समय किचनर को ब्रिटेन का विग्रह-प्रधान भी बनाया गया था।

लेखक 'दौलत भट्ट' के पुस्तक 'धरतीनो धबकार' में से हिंदी अनुवाद। 

The Bhavnagar Imperial Service Lancers

।।अस्तु।। 


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