जब कच्छ महाराओश्री ने गुलामप्रथा बंध करवाई.. || When Indian Princely State Kutch abolished slavery in Zanzibar || Kutch / Cutch State ||

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" जब कच्छ महाराओश्री ने गुलामप्रथा बंध करवाई "

"कच्छ राज्यचिन्ह"

सन्यासीओं के चित्त को जो चलित कर दे, प्रियतमा से मिलाप की उत्कंठा हृदयमे छलक उठे, अनंग को आँखों में उतारकर कामदेवकी कथा में पिरो सके, तथा क़ुदरतने जिसके कंठमे मधुरता दी हो ऐसी कामिनी के कंठ से कोकिलस्वर चहक उठे ऐसे ही उषाके थाल में से कीर्तिवंत कच्छ के गढ़ पर प्रकाश का प्रथम किरण उतर आया। आनंद के अंकुर समान मनोहर माधविओमें मग्न होने का प्रारब्ध प्राप्त करनेवाले पुरुष सामान पूर्व के आकाश से प्रकाश भी उदित हो चला।

प्रफुल्लित पंकज की पंखुडिओ को चूमते मधुकरो के गूंजने से नलिनी शोभायमान दिख रही थी तब कच्छ के महाराओ प्रागमलजी दीवान शाहबुद्दीन से सलाह-मसवरा कर रहे थे। 

बात कुछ यूँ बनी थी की, अंग्रेज सरकार का सन्देश आया था, "सरकार गुलाम खरीद-बिक्री के धंधे को जड़ से मिटाने पक्का इरादा कर चुकी थी। उस इरादे को अनुशासन में लाने को उपाय कर रही थी। उस समय तक कच्छ के महाराओ एकमात्र ही थे जो उपयोगी हो सके। इस लिए एक ख़ास फरमान के साथ दीवान को जंगबार भेजकर ब्रिटिश पार्लियामेंट के भेजे कमिश्नर को सहयोग करना था।"

उन दिनों ब्रिटिश साम्राज्य पृथ्वीके दोनों गोलार्ध पर प्रकाशमान था। उस साम्राज्य में कभी भी सूर्यास्त होता ही नहीं था। जहाँ उन्होंने अपना शासन स्थापित किया, वहाँ उन्होंने शिक्षण, वाहन, सन्देश-व्यव्हार, न्याय, रक्षण, स्वास्थ्य संसाधन, तथा सलामती को कम-ज्यादा मात्रा में प्राधान्य देते हुए शासन प्रणाली स्थापित की थी। प्रजा के निम्नस्तर का भी कोई व्यक्ति उच्च कक्षा वाले के साथ समकक्ष खड़ा हो सके ऐसी व्यवस्था के मध्य 'गुलामप्रथा' का प्रश्न ब्रिटिशरो की सोने की थाली में लोहेके दाग समान हो उठा था। ब्रिटिश पार्लियामेंट उस प्रश्न को हल करने में ही चिंताग्रस्त थी। मनुष्यजाति के अपमान स्वरुप 'गुलाम व्यापार' को नेस्तनाबूद करने को कृतनिश्चय हुए थे। पूर्वी आफ्रिका में से अवरोध आ रहे थे, निवारण हेतु जंगबार (झांझीबार, तांजानिया) के सुलतान सैयद बरगस के साथ की हुई सारी बातचीत विफल ही रही, सुलतान की भी अपनी मजबूरी तथा कठिनाइया थी। राजा तथा प्रजा के व्यापर का मुख्य आधार गुलाम ही थे। ज्यादातर इस व्यापार में अरबी तथा हिंदुस्तानी कच्छी व्यापारी ही जुड़े हुए थे।  

इस प्रथा को बंध करने से इससे जुड़े अन्य रोजगार भी हताहत होते, बागो के मालिक भी उत्तेजित हो परेशानियाँ खड़ी करते, तथा हजारो गुलाम भी बेरोजगार हो जाते। इन्ही कठिनाईओ के डर से सुलतान भी सबुरी बनाए बैठा था, अंग्रेजो के हाथ डगमगाते थे। बावजूद ब्रिटिश पार्लियामेंट इस मानवीय अधिकार के विरुद्ध की प्रथा को जड़मूल से मिटाने को तत्पर हो आदेश जारी किए जा रही थी। परिणामस्वरूप एक निश्चित परिणामकी प्राप्ति के लिए ख़ास कमीशन जंगबार पहुंचा, कच्छ के दीवान शाहबुद्दीन महाराओ प्रागमलजी बावा का ख़ास फरमान लेकर जंगबार में उतरे कमीशन में सामेल हुए। 

इस कमीशन के प्रमुख सर बार्टल फ्रेरी थे। उन्होंने सुल्तान के साथ बात-चित का दौर शुरू किया, पर कोई फलदाई परिणाम मिला नहीं। सुलतान लाखो की आय को ठुकराने को तैयार था, पर उपरोक्त कारणों से भयभीत भी था। आखिरकार सर फ्रेरी ने सुल्तानको धमकाते हुए कहा की, "अब अगर आप नहीं समझेंगे तो जंगबारको घेरने की सत्ता के उपयोग के अलावा और कोई मार्ग हमारे पास नहीं रहेगा।" यह धमकी भी बाँझ सिद्ध हुई तब आखरी उपाय के तौर पर कच्छ के दीवान शाहबुद्दीन ने महाराओ श्री प्रागमलजी के फरमान को हुकम का इक्का साझ चलाने को निर्धार किया। कमीशन भी सहमत हुआ, क्योंकि कलंक समान इस गुलामप्रथा को तोड़ने के मजबूत इरादे के साथे ही वे आए थे। सरकार के द्वारा साम, दाम, दंड, भेद जो भी उपाय कारगर हो वह आजमाने की छूट मिली थी कमीशन को।

दीवान शाहबुद्दीन काजी के विचार को अनुमोदन मिला। काजी साहबने दूसरे दिन ही जंगबार में माल-मिलकत के साथ स्थायी हुए मूलतः कच्छी, जिनके पास बड़ी संख्या में गुलाम थे उनकी सभा बुलाई।

इस सभा में दीवान शाहबुद्दीन काजीने अन्तः के आरपार उतर जाए ऐसा भाषण किया, जिसका मुख्य मुद्दा था की, कच्छी लोगो के अपने कब्जे में रहे गुलामो को तत्काल मुक्त करना चाहिए। संबोधन के अन्तमे कच्छ के महाराओ श्री प्रागमलजी का फरमान भी सुनाया,

महाराजाधिराज मिर्ज़ा महारावश्री प्रागमलजी बहादुर की ओर से,

'जंगबार में बस रहे कच्छी प्रजा को सूचित किया जाता है की, हाल ही में यहां सुनने में आया है की आप गुलामो की खरीद तथा बिक्री का धंधा जंगबार में कर रहे है। यह चलन बंध करने नामदार सरकार की इच्छा से विशेष हमारे तीर्थस्वरूप पिताश्री तथा हमारे द्वारा घोषणा की गई थी, बावजूद भी आपके हाथ इस क्रूर धंधे से बहार निकले नहीं है यह बिलकुल नामुनासिब बात है। वास्ते आप को यह हुक्म किया जाता है की यह धंधा आप हरगिज़ न करें, यदि कर रहे है तो तत्काल बंध किया जाए। फिर भी अगर कोई यह क्रूर धंधा करता है या इस धंधे में शामिल है तो नामदार अंग्रेज सरकार तथा हमे अपनी प्रजा को सख्त सजा करने का अधिकार है, वह अमल में लाया जाएगा। उसकी जो मिलकत कच्छ में हे राज्य द्वारा उसे जब्त कर खालसा की जाएगी। वास्ते यह असर तत्काल जाने।'

मृगशीर्ष कृष्णपक्ष 1, सोमवार, संवत 1929 विक्रमाजी परवानगी।
श्री मुख हजूर

उपरोक्त घोषणा से कच्छ के वतनपरस्तो में व्यापक असर हुई। एक व्यापारी के पास सात हजार गुलाम थे, उसने सभी को मुक्त कर दिए। इससे प्रेरणा लेते हुए अन्य व्यापारीओ ने भी गुलामो के धंधे को चिरकाल की बिदय देते हुए सभी को मुक्त कर दिए, और साथ ही एक जोड़ी कपड़े तथा कुछ दिनों का भोजन का प्रबंध भी कर दिया।

हिन्दीओ की इस उदारता की असर जंगबार के सुलतान पर भी हुई। उसी प्रकार बाग़ान-मालिकोंने भी गुलामो को छोड़ दिए। समग्र विश्व में मानवता को शर्मसार करने वाला यह धब्बे समान धंधा जंगबार में से जड़ से उखाड़ने का विषम कार्य कच्छ के महाराओ श्री प्रागमलजी की घोषणा से ही हो पाया। उससे पहले हुए तमाम प्रयत्न तथा खर्च निष्फल ही साबित हुए थे। विजयपताका फहराता कमीशन हिन्द में लौट आया।

महारानी विक्टोरियाने जंगबार के सुलतान को अभिनन्दन दिया, और इस घटना के बाद ब्रिटिशरोने पूर्वी अफ्रीका का वहीवटी विभाजन ही कर दिया। 


Maharao Pragmulji II of Kutch

अतिरिक्त

28 जुलाई 1860में भारतभूमि के पश्चिम छोर पर स्थित भूभाग कच्छ राज्य की गद्दी पर महाराओ श्री प्रागमल जी 22 वर्ष की आयु में सिंहासनारूढ़ हुए थे। इन्हे ब्रिटिश सरकार द्वारा 'Knights Grand Commander of the Order of the Star of India' (GCSI) के इल्काब द्वारा दिनांक 20/05/1871 को नवाजा गया था। प्रशासनमे निपुण यह राजवी की अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी। उन्हें पुस्तके तथा दैनिकपत्र पढ़ने का शोख था। 01/01/1876 को 37 वर्ष की आयुमे उनका निधन हो गया।
ई.स. 1868 में खान बहादुर काजी शाहबुद्दीन कच्छ राजीके दीवानपद पर आए। उन्हें सी.आई.ए. का खिताब मिला था। ई.स. 1874 में वे बड़ोदा राज्य में जुड़े थे। कच्छ महाराओश्री का घोषणापत्र 'केनिया डेली मेल' नामक अफ्रीका के अखबारमे प्रकट हुआ था।

Cutch State, 1878

लेखक 'दौलत भट्ट' के पुस्तक 'धरतीनो धबकार' का हिंदी अनुवाद।

। अस्तु । 



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