भावनगर महाराजा वजेसंगजी || Kanji Bhai Barot || Bhavnagar Maharaja Vijaysinh Ji ||

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प्रजा की निडरता का गर्व...!



        भावनगर में महाराजा वजेसंगजी (विजयसिंह जी) का राज था। भावनगर से दूर एक गाँव की सिमा पर कपास का खेत था। थी कपास लेकिन पान पान पर मानो आम आया हो ऐसा विपुल पाक था। पौधे के थड पर चाहो तो दुबला घोडा बाँध लो। कपास के घेटों से कहीं तो श्वेत अलंकार बहार आने को हो रहे है। पिले पुष्पों ने खेत पर जैसे पिली चादर बिछाई है। एक बुढ़िया लाठी के सहारे पुरे खेत की चौकी कर रही है। बुढ़िया कमर से तो आगे झुक गई है, लेकिन उसकी आवाज तीन तीन खेत तक सुनाई देती है। एक सांढ़ इस खेत में पेटभर चरता हुआ खड़ी फसल को कुचलता मस्ती में चढ़ा है। बुढ़िया खेत की दूसरी और थी, उसकी आवाजों को भी नजरअंदाज करता यह सांढ़ अपनी ही मौज में कोई पास में आए तो उसे भी सींग पर चढ़ा दे ऐसा जमा हुआ था वहां। 

        खेत के बाजू में से ही एक गाडी-मार्ग था, पांचेक घुड़सवार वहां से निकले। उनमे से एक ने इस सांढ़ को खुलेआम किसी के खेत में चरता देख, घोड़े को बिच खेत में से चलाकर गायो के झुण्ड तक सांढ़ को हंकार दिया। तब तक उसके साथी वहीँ खड़े उसका इंतजार कर रहे थे। इसी खेत में से एक पगडंडी पर से घोड़े चलाकर वे खेत की दूसरी ओर निकले। वही वह गुस्सैल बुढ़िया खेत की रखवाली करने बैठी थी।

        सांढ़ का तो उसे पता नहीं लेकिन चार-चार घुड़सवारों को खड़ी फसल के खेत के बीचो-बिच से आता देखा और दिमाग का पारा चढ़ गया। लगी चिल्लाने, "कौन हो ? कोई काम-धंधा है नहीं तुम्हे ? कितने हो ऐसे जो किसी के खेत के बिच में से घोड़े लेकर चलते हो ? लाज-शर्म है कुछ तुममे ?"

        तो उन अश्वसवारो में से एक ने कहा की, "अरे माजी, हमारे घोड़ो ने आपका जरा भी नुकसान किया नहीं है, हम तो सीधी रेख में चले आए है !"

        लेकिन बुढ़िया गुस्से से भरी बस चीख ही पड़ी, "ओ सीधी रेख वाले ! देख नहीं रहा, जहाँ से तुम चले होंगे वहां तो कपास का नाश कर दिया होगा, पौधे बर्बाद कर के रख दिए होंगे। तुम्हे थोड़ी परवा होगी ? मैंने अगर हमारे राजा को फरियाद की तो वो तुम्हारी जिन्दा खाल खिंचवा लेंगे।"

        "अच्छा, ऐसा कौन है तुम्हारा राजा?"

        "नहीं पहचानता ? हमारे भावेणा (भावनगर) के राजा वजेसंग बापु, तुम जैसो के तो नाख़ून खिंच लेंगे वे।"

        घुड़सवार मंद मंद मुस्काता, "बुढ़िया, वजेसँग को देखा भी है की खाली उसका नाम ही आता है?"

        "भले ही देखा न हो लेकिन उनके कायदे-कानून से पूरी वाकिफ हूँ। किसानो की फसल पर हाथ डालने वाले का काल है वह। मैं अगर फ़रियाद कर दूँ तो तुम्हारा तो क्या हाल होगा राम जाने...!"

        घुड़सवार के साथीदार कुछ बोलने जा रहे थे लेकिन उसने आँखों के इशारे से चुप रहने को कहा। इन लोगो को खामोश देखकर बुढ़िया तो और जोर में आ गई, मन पड़े वह इनको बोलने लगी।

        आख़िरकार उनमे से एक घुड़सवार बोल पड़ा, "बूढी अम्मा, भावनगर तो बहुत दूर है, आपकी फरियाद का अगर यहीं फैंसला कर देवे तो ?"

        फिर तो बुढ़िया के मुंह से होली के फूल गिरने लगे। कुछ ज्यादा ही गुस्से होकर बोली, "मेरा फैंसला करोगे तुम लोग ? मुझे मारोगे ? आ जा मैदान में ! तुम पांच हो में अकेली, उतरो घोड़े से और देखो मेरी लाठी।" बुढ़िया तो शूरातन से ध्रूजने लगी थी। 

        अब घुड़सवार सोचमे पड़े की इसका क्या किया जाए ?

        आख़िरकार एक जन ने खुलासा देते कहा की, "माजी शांत हो जाओ, आपको भावनगर तक जाने की जरूरत नहीं है, यह जो आपके साथ बात कर रहे है वे स्वयं ही भावनगर महाराजा वजेसंग जी है।" सुनते ही बुढ़िया के तो पसीने छूट गए। जैसे खून जम गया हो बिलकुल स्थिर हो गई, कुछ देर बाद स्वस्थता लाते हुए अपना आँचल बिछाते हुए कुछ नरम स्वर में बोली, "अपराध माफ़ करो बापु।"

        महाराजा वजेसंग जी बोल पड़े, "माजी, माजी ! मेरी छाती गज गज फूल रही है। मेरी प्रजा कितनी निडर है। मेरी न्याय-व्यवस्था पर उसे कितना भरोसा है ? और महाराजा ने उस बुढ़िया को इनाम देते हुए शांत किया।

|| अस्तु ||


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