एक प्रश्न... प्रत्येक विषय में निपुणता इतनी आवश्यक है क्या ?
वैसे तो मैं हर विषय में थोड़ा थोड़ा टहलता रहता हूं, पर किसी एक में निपुण होने का कभी प्रयास नहीं किया... मैंने शुरुआत की थी लिखने से.. क्योंकि मैंने पहले पढ़ा था.. अब मैंने क्या क्या पढ़ा है वो मैं अपने पिछले ब्लोग्स में कई बार लिख चूका हूं। तो पढ़ने के कारण जिज्ञासा हुई लिखने की.. सोचा कविता लिखी जाए, छोटी सी ही तो होती है..! लिख दी.. मेरी पहली कविता शायद वैसी ही थी जैसा बिनानुभवी का किया हुआ कार्य। कोई रस नहीं, बस सीधे सीधे वाक्य ही लिखकर शब्दों को आगेपीछे कर कविता के स्वरुप में देखकर खुद को राजी रखा की हाँ.. लग तो कविता रही है। न किसी को पढाई.. न कहीं शेयर की। आज भी पड़ी होगी डायरी में किसी कोने में..! फिर छंद लिखे, और फिर... आज कल कविता तो नहीं लिख रहा बस कभीकभार दो पंक्तिया लिखकर कविपने का दिलासा ले लेता हूं। अपूर्ण निपुणता..
खेर, कविता के अलावा मुझे रस था इतिहास में.. क्योंकि मुझे जानना था की मैं कौन हूँ.. गुजरात के किसी पर्टिक्युलर गाँव में मैं कैसे पहुंचा.. पूर्वज पहले कहाँ थे, यहाँ कैसे आए, राजतन्त्र में क्या योगदान था ? यह सब सवाल होने स्वाभाविक भी थे, और मैंने जाने भी.. धीरे धीरे मुझसे जुड़े हुए लोगो के विषय में जानने की रूचि हुई, तो उनका इतिहास भी जाना, वे कहाँ से आए, उनका मूल कहाँ है ? तो इस तरह इतिहास के विषय में रस हुआ, फिर रजवाड़ो के विषय में जाना, युद्धों के विषय में.. लेकिन यह विषय भी मेरा गुजरात तक सिमित रहा.. या फिर यूँ कहूं की मेरे वंश तक सिमित रहा। यहाँ भी अपूर्ण निपुणता..
पढाई में से रस ऐसे उड़ा जैसे ऊंट के सर से सींग... (अब कोई कहना मत गधे के सर से सींग होता है, मुझे ऊंट पसंद है तो मैंने ऊंट के सर से सींग गायब किए) मुझे लत लगी फोटो एडिटिंग की.. दिनभर फोटोशॉप पर बैठा रहता, बहुत एडिटिंग की.. इतिहास में शौक तो था ही, तो इतिहास से जुडी बातो को फोटोशॉप के जरिये लिखकर खूब बनाए, खूब वाइरल भी हुए.. लेकिन शौक की सिमा होती है.. फिर से एकबार किसी विषय में अपूर्ण निपुणता..
फिर किसी ने एक दिन चने के झाड़ पर चढ़ाया की तुम लिखो.. लंबी लंबी फेंको.. तुममे पोटेंशियल है.. तुम्हे पता नहीं है.. वो दिन और आज का दिन.. मैं नीरज चोपड़ा से भी लंबा फेंक सकता हूँ.. लिखता रहा.. एक डाल से दूसरी डाली बंदरकूद मारता रहा.. घुमाफिराकर वहीँ आ खड़ा हुआ - अपूर्ण निपुणता..!!!
अच्छा, हर व्यक्ति हर विषय में परफेक्ट नहीं होता। किसी एक विषय में लगा रहे तो शायद निपुणता पाए। मैंने तो कपड़ो की जोड़ी की तरह विषय बदले थे... निपुणता कहा से आती..? तो निष्कर्ष तो समझ में आ गया की जहाँ बैठो वहां फेविकोल लगाकर बैठना जरुरी था.. अरे हाँ, विद्यार्थी था मैं कंप्यूटर इंजीनियरिंग का..आधी छोड़ दी, और आज जॉब करता हूँ एकाउंट्स की..! कभी कभी तो लगता है मैंने कितने विषय बदले है.. आज भी किसी दिन मैं बुक्स पढता हूँ, किसी दिन फोटो एडिटिंग करता हूँ, कविताए तो अब कठिन लगती है, पर दो ही सही पंक्तिया लिख लेता हूँ, और यह फेकमबाजी तो हररोज ही कर रहा हूँ..! और तब भी इन्ही विषयो में दूसरे लोग मुझसे बहुत बेहतर कर रहे है, क्यों क्योंकि वे सिर्फ इन्ही में से किसी एक विषय में लगे रहे, जबकि मैं एक ही साथ "हम साथ साथ है" खेलने में पीछे रह गया..!
अब आकर कोई पूछे की तुम तो इतिहासरसिक थे न, तो बताओ दिल्ही पर कौनसे वंश कब आए.. तो मैं फंस जाऊंगा पर कोई पूछ ले की सोलंकी कालीन गुजरात की सिमा कहा तक थी तो कह सकता हूँ की, उत्तर में शाकम्भरी (अजमेर), पश्चिम में सिंध, पूर्व में मालवा, और दक्षिण में उनका बादामी के चालुक्यों से व्यव्हार था.. फिर भी खटक तो एक बार को लग ही जाती है की मुझे उसके प्रश्न का जवाब नहीं पता था... जवाब नहीं पता था क्योंकि वह मेरे रस के बहार का विषय था.. और मेरा इतिहास में रस गुजरात तक सिमित था, उसमे भी सौराष्ट्र तक विशेष.. बाकी गुजरात का भी कोई पूछ ले तो नहीं बता सकता..! एक और बात भी तो है.. तुम किसी विषय का रिविज़न नहीं करते तो भूल जाओगे.. आज अगर याद करने बैठु के की मैंने कितनी बुक्स पढ़ी है तो मुझे याद नहीं। न बुक का नाम न ही लेखक का नाम...
पर किसी को छेड़ना ही है तो वह ऐसे ही कहेगा की तुमने तो पढ़ा है, तुम्हे तो पता होना चाहिए। क्यों भाई ? दो पंजे भर दिमाग में पूरी दुनिया भरनी जरुरी तो नहीं..! लेकिन फिर भी यदि मैं किसी की तुच्छ टिपण्णी को गंभीरता से लेकर स्वयं की समीक्षा करने बैठ जाऊं तो बस ऐसा लंबा लंबा लिख ही पाउँगा..! मैं तो फ़िलहाल कोई मुझे किसी विषय में ले जाने की कोशिश करे तो टहल आता हूँ, मना नहीं करता.. पर मुझे इतना पता है की प्रत्येक विषय में अब निपुणता तो नहीं आ पाएगी तो प्रत्येक विषय में अपूर्ण निपुणता ही पा लूँ..!!
चलो यार.. बहुत हुआ..!
दिनांक (२५/०९/२०२४, १९:५१)