और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा..
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
निराशा से घिरे हुए लोग बहुत अजीब सोचते है, और शायद निराशा का कारणभूत प्रेम ही उन्हें यह सब सोचने पर मजबूर करता होगा ? घायल प्रेमी के लिए तो सब से बड़ा दुःख ही यही है की उसकी प्रेयसी या उसका प्रियतम अब उससे दूर चला गया, या फिर उसे अकेला छोड़ गया.. या फिर वही घिसापिटा विश्वासघात..! विरह व्याकुल के लिए वस्ल यानि मिलन को ही वह राहत या आराम समझता है..! भाई ९ रस है.. प्रेम एक मात्र नहीं.. प्रत्येक रस में राहत मिल सकती है यदि चाहो तो..!
न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
- बशीर बद्र
अंतर्मुखी होते है न वे कभी प्रेम के प्रति खुलकर सामने नहीं आते.. वे रील्स देखते रहते है, कभी किसी रील में कोई सुंदर सी शायरी या, दो तुक पंक्तिया आ गई तो बस हो गया.. कल्पनासृष्टि में चले जाएंगे.. रील में कर्णप्रिय संगीत के केंद्र में ऑडियो फॉर्मेट या रिटन फॉर्मेट में उन पंक्तियों को बार बार दोहराते है.. कल्पना करते है.. लेकिन किसी को भेजते नहीं.. बस सोचते रहते है.. फिर वहां लाइक या कमेंट छोड़ जाते है, किसी दिन वही रील उनकी फीड में जाए और वे अपनी कमेंट पढ़े..!! मतलब कान सीधा नहीं पकड़ना, यूँ सर के पीछे से हाथ ले जाकर दूसरा कान पकड़ना..! और वही.. न जी भर के देखा, न कुछ बात की.. तो करो ना.. किसने रोका है.. खुद की झिझक ने ?
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
- अहमद फ़राज़
गजब पंक्तिया है.. किसी को कितनी जल्दी अपनी मंजिल मिल जाती है..! तो कोई अथाह मेहनत के बावजूद जिंदगी से जूझता रहता है.. थकता है, लेकिन हार नहीं मानता। चाहे उम्र की अवधि आ जाए पर अंतिम साँस तक लड़ते रहना भी उतना ही आवश्यक है जितना "बाबू ने थाना थाया" पूछना... और क्या.. जिंदगी मिली है तो मजे करो.. बाते करो, भावनाए व्यक्त करो, पसंदगी-नापसंदगी बताओ। लेकिन नहीं.. हमे तो रील्स देखनी है..!!
ભૂલી જાઓ તમે એને તો સારું છે ‘મરીઝ’,
બાકી બીજો કોઈ વિકલ્પ કે ઉપચાર નથી.
- મરીઝ
मरीज़ भी तो गुजराती में यही कह रहे है की, भूल जाओ, आगे बढ़ो.. भूलने के अलावा कोई भी विकल्प नहीं है.. उस दर्द की दवा भी तो नहीं.. सिगरेट्स या शराब भी नहीं..! फिर भी अपने दर्द के व्यक्त करने को या अकेलेपन का साथी मानकर लोग इन्ही का तो सहारा लेते है.. वो होते है न कुछ, भरी महफ़िल में भी अकेले.. फॅमिली के बावजूद भी अकेले... क्योंकि वे अव्यक्त है.. वे अपना दिल खोलने से पहले हजारो छलनी से छानते है.. कई बार सोचते है.. फिर भी झिझकते है.. उपचार है ही नहीं.. भूतकाल को भूले बिना आगे बढ़ना सम्भव है लेकिन अत्यंत कष्टदायक भी..
કિસ્મત કરાવે ભૂલ તે ભૂલો કરી નાખું બધી,
છે આખરે તો એકલી ને એ જ યાદી આપની!
- કલાપી
कलापी कहे वही सही... किस्मत को मंजूर हो उतनी भूले-गलतिया में कर लूँ... पर आपकी याद, आपकी स्मृतिया ही मेरा अंतिम सहारा रहेगी।