नवरात्रि आ रही है, मन मे नया उमंग है.. || NAVRATRI...

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नवरात्रि आ रही है प्रियंवदा ! मन मे नया उमंग है.. उत्साह भी है.. हमारे यहां वही पुरानी रीति चली आ रही है। न कोई बड़ा विशेष तामझाम, न कोई बड़ी उहापोह.. बस एक एम्पलीफायर है, दो स्पीकर.. लाइटिंग डेकोरेशन हमने खुद ही बनाई है, लंबे वायरों में बल्ब-होल्डर लगाकर उंसमे रंगबिरंगी बल्ब्स लगाते है..



स्टोर से पहले तो दो लाइटबोर्ड लिए, उसका वायर छोटा पड़ा तो एक और बोर्ड उसके साथ कनेक्ट किया, मैदान के बीचोबीच पीपल है, वहां तक लाइटबोर्ड खींचा। दो जुने जमाने की फोकस लाइट थी लेकिन सालभर से पड़े पड़े उसके प्राणपखेरू उड़ गए है ऐसा मालूम हुआ। वही अलमारी में दो अद्यतन led लाइट थी उसीको उपयोग में लिया गया। आज मैदान साफ सूफ किया। वर्षा की उपजी घास सूख चुकी थी, उसे साफ की, मैदान भी लेवल कर दिया।


रात के दस बजे जुगाड़ू लाइटमैन तो मिला नही, जो खंबे से तार खींच सके.. इस लिए आज की इतनी मेहनत से पसीने में तराबोर हुआ सारा तामजाम समेंटकर अपने अपने घर को लौट गए.. प्रीतम गधा ऋषिकेश गया है, गजा पता नही कौनसी चिलम पीकर सोया है फोन ही नही उठा रहा..!


आज इसलिए यह सब लिख दिया ताकि साल-दोसाल बाद शायद यह पढूं तो याद आए..


मुझे लगता है रविवार होना ही नही चाहिए.. रविवार की छुट्टी के नाम पर एक तो मुझे हॉफ डे ही मिलता है.. उसमे भी घर के ढेरों काम चार बजे के बाद निपटाने होते है.. पूरी बाजार एक आधे दिन में नपवाने के लिए ही शायद रविवार होता होगा..! गरीबो का शॉपिंग मॉल d-mart में गया था.. अपने यहां के शहरों में शायद इस d-mart का क्रेज़ कुछ ज्यादा ही है..! अच्छा भी है.. ज्यादातर वस्तुए एक ही जगह मिल जाती है.. बस समस्या होती है राशन में.. यह लोग सारी दालों के डब्बे बाजू बाजू में रखते है, ऊपर से उनपर लगे स्टिकर भी थोड़े इधर उधर होते है, मूंग की दाल पर चने का स्टिकर लगा था..! होते है मेरे जैसे कुछ.. जिन्हें इतनी सारी दालों के नाम याद नही रहते.. और डर भी रहता है कि किसी से पूछे तो हंसेगा..!!! 


कुछ दोस्त सेवा में गए है.. गुजरात की प्रसिद्ध पैदल यात्राओं में से एक है नवरात्रि में कच्छ स्थित माता के मढ़ पैदल पहुंचना..! मुम्बई में बसे कच्छी लोग भी नवरात्रि में वहां से सायकल पर लगभग नोसो किलोमीटर की यात्रा कर माता के मढ़ पहुंचते है, सौराष्ट्र से भी लगभग साढ़े तिनसों - चारसौ किलोमीटर की पैदल यात्रा करते है लोग। कोई भक्त शरीर पर दस किलो की जंजीर बांधकर भी यात्रा करता है। कोई दंडवत प्रणाम करते जाता है, कोई सर पर गरबा लेकर जाता है, अटूट श्रद्धा है लोगो की माँ आशापुरा पर। नाम ही आशापुरा है, आशा पूरी कर वह आशापुरा। इन पैदल यात्री ओ की सेवा करने के लिए केम्प लगाए जाते है। अबजो का मालिक भी इन केम्प्स में यात्रिको के पैर दबाता दिख जाएगा। कोई करोड़पति हाथ मे पानी का जग लिए यात्रिको को पानी पिलाता दिखेगा.. कितनी श्रद्धा होगी..!


मेने दो बार यह यात्रा की है, मेरे यहाँ से तो बस देढ़सो किलोमीटर है.. जो चारसौ किलोमीटर से आ रहा होता है वह भी बिना थकावट से "जय माताजी", "जय आशापुरा" का जयघोष करता जाता है..!


मैं पहली बार गया था तब सो किलोमीटर के बाद तो लगा था कि बस.. पैरों में छालो के कारण जूते-चप्पल भी नही पहनी जा रही थी, घुटने तो लग रहे थे कड़ाके से यही टूट पड़ेंगे.. पर अब पचास किलोमीटर ही था तो थोड़ी हिम्मत बनाई। पता नही कोई आंतरिक ऊर्जा हो या मढ़ की शक्ति आखरी के बीस किलोमीटर तो मैं दौड़ता हुआ गया था, सारे दोस्त अचंभे रह गए थे..! दूसरी बार भी बिल्कुल यही अनुभव हुआ था, फिर मुझे स्वयं से ही ऐसा अनुभव हुआ कि मढ़ के आसपास एक ऊर्जा का संचार तो है ही.. वरना पहली बार मे बहुत से लोग हिम्मत हारकर बस में बैठ जाते है। 


पिछले कुछ वर्षों से अब पैदल नही जाता। संसाधनों की वजह से अब वहां भीड़ भी बहुत होती है। नवरात्रि के बाद मैं वहां जाता हूं। इस बार प्लानिंग तो थी, पैदल नही जा सकते तो सेवा में चले जाए.. पर हुआ वही एक दो दोस्त आखिर में पानी में बैठ गए.. 


तो बस आज अपनी नवरात्रि की तैयारियां शुरू कर दी..


चलो यार, आज थोड़ी पोलपट्टी खोलने जैसा ही लिख दिया..

(दिनांक : २९/०९/२०२४, १०:५७)


|| अस्तु ||


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2Comments
  1. hmmm...navratri ki taiyariya...alag alag chetra me alag tarah se jaroor ki jati hogi lekin sbme bhav samaan hi hota hai.

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    1. बहुत शुक्रिया पढ़ने के लिए...!🙏

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