अच्छे खासे दिन गुजर रहे थे... डेली लाइफ व्लॉगस.. नहीं नहीं ब्लोग्स लिख रहा था.. कुछ स्नेही-मित्रो को पढ़ा रहा था, वे भी प्रतिक्रियाए दे रहे थे.. तभी एक दिन प्रीतम उठ खड़ा हुआ.. "क्या लगा रखा है यह.. गरबा खेल रहा है, बेवड़ा बन रहा है, मजदूरी कर रहा है.. थोड़ा सभ्य बन.. एक पुस्तक है, पढ़.. मुझे तो हलाहल जैसा लगा है पर तुज विषैले पर क्या प्रभाव पड़ता है, उसकी समीक्षा मुझे करनी है..!"
लग रहा था, जैसे मैं लेबोरेट्री का मूषक हूँ, जिस पर यह पुस्तक रूपी प्रयोग हो रहा है.. पर सच कहूं तो मैं भी लगातार लिखने के कारण कुछ नयापन खोज रहा था.. पुनः एक बार कल्पनाश्व के स्कन्धस्वार होना था। अब प्रीतम तो मुझे अटकाकर मौज ले रहा था और मैं इन कागझी नाव पर लहरों से लड़ रहा था.. वैसे अच्छा ही हुआ, बहुत लंबे समय बाद पुस्तक के साथ बैठक हुई.. वही पुराना अंदाज अनुभव हुआ.. एक ही बैठक में लगातार कई पन्ने पलट दिए।
यूँ कहूं की एक ही बैठक में १६ चेप्टर पढ़ लिए थे..! कॉलेज काल की याद ताज़ा हो गई, कॉलेज के दिनों में सिलेबस के अलावा सब कुछ मैं पढ़ा करता था। लायब्रेरियन भी एक दिन तंज कस्ते बोला, "आपसे किसने कहा यह बुक्स यहाँ पड़ी पड़ी बॉर हो रही है ?"
"क्या मतलब ?"
"भाई तुम डेली नई बुक ले जाने लग रहे हो.. पढ़ते भी हो या बस इन्हे बाहर की दुनिया घुमाने ले जाते हो.."
वाकई, ढाईसौ पेज पढ़ना आम हो गया था, रातभर में बुक पढ़ी, सुबह ४ बजे हॉस्टल की दीवार कूदी, बाहर ही चाय वाले से चाय, नमकीन और सिगरेट.. यही नित्यक्रम..! वे दिन तो बहुत पीछे छूट गए है आज.. आज पढ़ने बैठूं तो या तो कुछ काम आ जाएगा बिच में, या फिर मन नहीं लगेगा.. कारण है मोबाईल नोटिफिकेशन्स। अब प्रीतम की दी हुई बुक है तो इ-बुक ही.. पढ़नी मोबाइल में या कम्यूटर पर। ऑफिस में तो कम्यूटर पर पढ़ना शुरू किया, बुक का टाइटल तो आपने हैडिंग में ही पढ़ लिया, "कितने पाकिस्तान" लेखक है "कमलेश्वर"..
मैं पहले इंडेक्स के बाद से सीधा कहानी ही पढ़ा करता था। इसमें पता नहीं क्यों बिलकुल ही शुरू से पढ़ने की इच्छा हुई.. उतने में प्रीतम का मेसेज आया.. "नूतन संस्करण के विषय में जो लिखा है वह तो अवश्य ही पढ़ना।" मैं वही पढ़ रहा था। कुछ ७-८ संस्करण हो चुके है इसके..! कुछ बुक होती है जो वाकई इतनी बढ़िया हो की अप्राप्य ही होती रहे, पर यह बुक के इतने संस्करण कैसे छपे वह मेरे लिए तो आश्चर्य का ही अतिरेक है..!
एक तो इस बुक के चेप्टरों का कोई तालमेल ही नहीं है, एक चेप्टर से दूसरे चेप्टर के बिच कोई लिंक ही नहीं है.. फिर भी आती है यह नवलकथा की श्रेणी में.. पता नहीं कैसे.. उससे भी बड़ा क्यों ? हालाँकि मुझे नवलकथा या उपन्यास के नियम-बंधारण तो मालुम नहीं है पर मैंने जितनी नवलकथाए और उपन्यास पढ़े है उसके हिसाब से तो यह उस श्रेणी के अधोतम पायदान पर क्यों न हो ? चलो उसका स्तर गया तेल लेने लेकिन कोई आदमी इतनी सारी कल्पना और वो भी बिना सर पैर की कैसे कर लेता है ? प्रभु माफ़ करे, लेखक तो अब इस दुनिया में है नहीं। अच्छा एक चीज और, मैंने २३वे चेप्टर पर ही "सर्वधर्मान्परित्यज्य" कर लिया। बस बुक को डिलीट नहीं मारी है..! किसी से बदला लेना हो तो उसे यह बुक जरूर भेजूंगा... लेकिन १ मिनिट.. मैंने प्रीतम की कौनसी बकरी चुराई थी ?
यह लेखक मुझे लगता है पूर्वाग्रह से पीड़ित होगा.. या फिर किसी भूदेव ने इससे ज्यादा दक्षिणा मांग ली होगी ? पता नहीं यार, ऐसा लेखन मैंने कभी नहीं पढ़ा.. भाई डूबे पड़े है वामपंथ में और कथित ब्राह्मणवाद को कोसने में..! अच्छा, आज कुछ लोग ब्राह्मणो को दक्षिणा लेने पर भी कोसते है.. काहे भाई, ब्राह्मण का कार्य था शिक्षण देना और धर्म को जीवित रखना। द्रोणाचार्य के घर पर जब अश्वत्थामा आटे का दूध पी रहा था तब उसने अपने सामर्थ्य से एक नया वर्ग खड़ा किया। भई उनका काम ही था शिक्षा से जुड़ा हुआ, यह तो जब दूसरे वर्ग के शिक्षकों ने अपना प्रभुत्व बढ़ाया तब उनके पास कोई काम शेष न बचा फिर वे दक्षिणा पर आश्रित हुए। जैसे आज के समय में सारी वर्णव्यवस्था इधर-उधर हो चुकी है। अच्छा, यह जो लेखक है उसे मात्र ब्राह्मणवाद से ही समस्या नहीं है, उसे समस्या है इस्लाम के विरोधीओ से भी.. विरोधी मतलब प्रखर हिन्दुत्ववादीओ से। अच्छा खुद तो वह इस्लामवाद को बढ़ावा दे रहा है। इस्लाम को बिलकुल ही शुद्धता का पर्याय कह रहा है। हालाँकि कई जगह इस्लाम में भी इसने ब्राह्मणवाद को कोसा है.. जब आप किसी को पढ़ते हो न फिर आप भी उसी की तरह बोलने लगते हो। ब्राह्मणवाद से बढ़िया उसे धर्म का ठेकेदार कहना चाहिए, ब्राह्मण तो एक विशाल वर्ग है, आज वर्ण भी है। इस बुक में लेखक बाबर को उसकी कब्र से उठाकर ले आया, उसके मुख से उसने साबित करवाया की उसने राम मंदिर नहीं तोडा था। अबे इतना भी क्या अँधा होना ? जो प्रवाह चल रहा है उसे चलने दे न भाई.. यह वो विचारधारा वाले लोग है जो एक गाल पर तमाचा खाकर दूसरा गाल आगे करते है, उस पर भी तमाचा पड़े तो फिर से पहले वाला गाल आगे करते है, यही प्रक्रिया पुनः पुनः दोहराते है, इन्हे मजा आता है स्वयं को कमजोर करने में। शायद यही वो प्रजाति है जो दुसरो को अपने से बेहतर समझती है, रावण तथा दुर्योधन में अच्छाई ढूंढती है बस स्वयं को "बौद्धिक या विचारक" दिखाने के लिए। अबे एक पूरा कथानक है की रावण को शाप था की परस्त्री को इच्छाविरुद्ध छुते ही स्वयं भस्म हो जाएगा, इसी कारणवश उसने मात सीता से दुरी बनाए रखी थी। कर्ण के पक्षधर कहते है कर्ण के साथ अन्याय हुआ, अधर्म हुआ। क्या कर्ण ने अपमान नहीं किया था द्रोपदी चीरहरण के समय, अभिमन्यु वध के समय। यह वही लोग है जो दुर्योधन को सुयोधन कहते है।
बाबर के बाद इसने औरंगज़ेब का भी अच्छा वाला पक्ष रखा.. औरंगज़ेब ने जो भी किया, जजिया से लेकर धर्मान्तरण तक, सब सही था। भारतीय उपमहाद्वीप की सुरक्षा, शांति और स्थिरता के लिए। मुझे वाकई समझ नहीं आ रहा अब इसे कौनसी गाली दूँ ? इसी तेइसवे चेप्टर में उसने औरंगज़ेब के सारे अधर्मो पर अच्छाई की चादर चढ़ाई है। यही हद हो गई, मैंने यही इसी तेइसवे चेप्टर से ही इसको पढ़ना बंद कर बेफिजूल की ऊर्जा बर्बाद करना उचित नहीं समझा। मेरे हिसाब से, मेरी जो लघुताग्रंथियाँ या मेरी जो मानसिकता है उस हिसाब से मुझे यह बुक धीमा जहर लगी। अब मुझे पता नहीं है की आधी से ज्यादा पढ़ चुकी यह नवलकथा आगे कौनसा मोड़ लेगी, पर इतना तय है की इस जहर को मैं और ग्रहण नहीं कर सकता। भैया ! जो आदमी बाबर और औरंगज़ेब तक के अच्छे पक्ष व्यक्त करने में रुका हो वो इस कहानी को तंबूरा मोड़ेगा ? और क्या कल्पना कर रहा है, कभी ईरानी रेगिस्तान में कालिदास से बाते कर रहा है, कभी ग्रीक और सुमेरियन सभ्यता से बाते कर रहा है, अचानक ही मॉरीशस के समुद्रतट पर रेत में सम्भोग कर रहा है, कभी पाकिस्तान के करांची में चाय-नास्ता कर रहा है। इतना कौन उड़ता है ? बड़ा आदमी है लेखक, हो सकता है। स्वयं के धर्म की तो इसने बुराइयाँ गिनवाई है ब्राह्मणवाद के नाम पर और इस्लाम की तारीफों का थोक लगा रहा है। क्या इसके समयकाल में इस्लाम के नाम पर ही कश्मीर से पंडितो को भगाया नहीं गया था ? ब्राह्मणवाद की बात करता है। क्या इसी के समय पर कोई शरीर पर विस्फोटक जैकेट पहनकर भरे बाजार में फट नहीं रहा था ? ब्राह्मणवाद की बात कर रहा है। क्या इसी के समय में कोई ताज में नहीं घुसा था, क्या इसी के समय में किसी ने बार बार भारत की भूमि पर आतंकवाद नहीं फैलाया था ? बात करता है ब्राह्मणवाद की। यही वो लोग है जो है कहते है की आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है, फिर जितने भी आतंकवादी मारे जाते है या वैश्विक आतकंवादी सूचियों में जिनके नाम आते है वे सिर्फ एक ही धर्म से क्यों होते है? जब ऐसा तीखा सवाल करो तब यह लोग फिर से वही बात दोहराते है कि "ब्राह्मणवाद ही कारणभूत है।"
छोडो यार। मैं भी इसके पिलाए विष के कारण उत्पन्न हुए प्रतिविष को इसी के विरुद्ध यहाँ उगल रहा हूँ। सीधी सी बात है, भारत भूमि ही एक मात्र है जहाँ सदैव से एक धर्म, पंथ, जीवनपद्धति अखंड चली आ रही है, सदा से निर्वहन हो रहे इस धर्म की पुरातन शाखा प्रशाखा इतनी फैली है की इसी एक ही भूमि पर सनातन से कई पंथ निकले, बौद्ध, जैन, सीख, और उन पंथो की भी अन्य प्रशाखाए बनी। फिर भी कुछ इसी सनातन की छायां में पले, पोषे गए, उसी सनातन रूपी वटवृक्ष का निकंदन करने में लगे है..! और हम जैसे जो वामपंथ और दक्षिणपंथ के मध्य में झूलते है, उन्हें वामपंथ से परहेजी हो जाती है, घृणा उत्पन्न होती है। आर्थिक और सामाजिक पिछडो को तो हम भी चाहते है की आगे आए, समाज की मुख्यधारा में बसे, लेकिन उसकी कीमत किसी समुदाय, पंथ, जाति का भोग कदापि नहीं हो सकता।