संडे, बस संडे || Sunday, Bus Sunday..

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Happy Sunday..

हाँ, न ही कल कुछ लिख पाया था, न ही आज दिनभर में..! फिलहाल खड़ा हूँ बस डिपो पर, ७:५० की बस अभी ८:३४ तक आई नही है, तो सोचा यही लिख दूँ..! नही, नही, अब आ चुकी.. और मैं बैठ चुका। बहुत सालो बाद आज बस में बैठा हूँ। समय के साथ साथ बसों में भी बदलाव आए है। एक समय पर बस मात्र बस ही नही चलता-फिरता एक माहौल हुआ करती थी, सीट के लिए रुमाल डालकर झगड़ना, "आप कहाँ जा रहे है ?" यह पूछकर कौनसा गांव, और उस गांव में हमारी यह रिश्तेदारी तक की पहचान बनाई जाती थी, और उतरते समय एक दूसरे को हमारे घर जरूर आना तक कि बात बस के इस सफर के दौरान ही हो जाती। धीरे धीरे हम सिमटते गए। बसे भी सिमटती गई। आज बस में ब्लॉक्स होते है, वो भी पर्दे वाले.. क्या है कि प्राइवेसी चाहिए। बस है, खिड़की नही है। AC वाली है, पर वैसी वाली नही है जो बचपन मे हुआ करती थी।

लोग व्यस्त है, अपने फोन में ही। मैं भी हूँ।

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