एकांत, निर्जनता, नीरवता.. उसे खूब पसंद आती है जो सदा ही भीड़ में रहा है। या फिर जो नीरवता से परिचित है वह उस से अब अति-तृप्त हो चुका है, वह चाहता है शोर-शराबा.. वास्तव में हमारी आकांक्षा वह होती है, जो हमे अप्राप्य है। जो हमारे पास है उससे ज्यादा। कभी कभी कुछ पढ़ता हूं, तो उसमें - उस कथानक में, उस लेखनीधारक की मनोस्थिति को जानने की उत्कंठा ह्रदयविदारक हो पड़ती है। तुम्हे पता है प्रियंवदा.. ह्रदय में उठती उत्कंठाओं का कोई शमन नही है.. क्योंकि यह मेरेथोन से भी ज्यादा दौड़ाती है। किसी एक कि आपूर्ति के तुरंत पश्चात ही वह नई कामना के पीछे प्रवृत्त करा देती है। जिन विचारों ने मुझे कभी भ्रमित किया, जिन विचारों को मैंने अपनी लेखनी से उधेड़बुन भरे शब्दो में छिपाकर रखा, उन कविताओं को प्रस्तुत करने पर कोई भी नही समझ पाता था, क्योंकि वह मेरे लिए थी। किसी ने उसका अर्थघटन करना चाहा तो उसके द्वारा समझे गए अर्थ को मैंने हकार में मान्य रखा। आज जब उन पंक्तियो को मैं पढता हूँ, निराशावाद के अलावा वहां कुछ भी शेष नही है, न ही आज है। द्विधा हो, दो मार्ग दिख रहे हो, दो समान विकल्प हो, दोनो विकल्पों से प्राप्त परिणाम भी निराशाजन्य ही उपजता हो, तब भी उन विकल्पों में से किसी एक का चयन करना आवश्यक है क्या? निष्क्रियता का शरणागत होना सही नही होगा? कभी कभी लेखनी भी किसी की प्रतिछाया में चली जाती है। किसी को पढा हो कभी, लिखते समय कभी कभी उसका प्रभाव बन आता है। या फिर अन्तःमस्तिष्क के स्मृतिपटल ने संगृहीत किए शब्द स्वयं ही प्रकट हो आते है.. जो ठीक उसीकी प्रतिच्छाया निर्माण कर देते है।
प्रियंवदा ! क्या हो जब तुम्हारी कल्पना तुम्हे किसी और की लेखनी में दिख जाए.. होता है। मैंने आज (कल) ही कहीं एक यात्रा वृतांत पढा.. पढ़ते हुए बस वही बात मेरे भीतर चल रही थी कि यही सब तो मैंने सोच रखा था… उस स्थान का वर्णन, उस स्थान में मेरी रुचिकर क्रियाओं को कोई वास्तविकता में उतार आया है.. आश्चर्यपूर्ण है.. अधिकांश वर्णन मेरी कल्पनाओं में पहलेसे ही विद्यमान था। होती होगी कोई चेतना जो वहां यहां भटकती रहती हो। क्या सचमे कोई ऐसी जगतनियंता शक्ति विध्यमान होगी? क्या वास्तव में कोई हम पर पेगासस छोड़े हुए है? क्या पता..
जो भी हो.. आज क्या हुआ कि अपने एक पुराने मित्र है, YQ वाले.. यूँ तो बड़े सौम्य है, सबका हाल-चाल पूछते रहते है, सलाह-सूचन करते है, लेकिन थोड़े ज्यादा आत्मीयता के चलते कई बार सबकी लेखनी को पूर्णतः सत्य भी मान लेते है, अच्छा खुदने अपना नाम असत्य रखा था फिर भी.. लेकिन कभी कभी विद्रोह पर उतर आते है। क्रांतिकारी स्वभाव मालूम पड़ता है। भाई ट्विटर पर ही "हैशटैग_बैन_ट्विटर" को ट्रेंड में लाने को चाह रहे है। मैं मित्र होने के नाते आपके साथ पूरी तरह सहमत हूँ.. लेकिन फिर मुझे यह ख्याल भी आता है कि इसका लाभ क्या? अपने पास अन्य विकल्प तो कोई है नही। मुझे याद आता है जब एक एप बंध हो रहा था, उन्होंने पैसे मांगे, लोगो ने भरभरकर दिए, हम जैसो ने दूसरे विकल्पों (इंस्टाग्राम आदि) पर अपना आश्रय स्थापित किया, और चले गए। पर भाई यही लगे रहे.. शुरू से यह विद्रोह, और क्रांति की लहर आज पर्यंत जारी है। मुझे याद आता है, हमने इनके कर्मचारियो को मेल कर करके गुजराती फ़ॉन्ट्स एड करवाए थे.. लेकिन भाई, एक बात यह भी है कि हम जिस देश मे रहते है, वहां के नियम कानून हमे मानने होंगे, यह भी एक सत्य है। आपको सलाह नही दे पा रहा क्योंकि आप भी पूर्णतः गलत नही हो, आपके भेजे मेल्स पढ़ने पर पता चला कि यह लोग भी धृष्टता तो करते ही है। भाई, इनका धंधा है यह.. हर कोई कुछ न कुछ बेच रहा है। यह लोग एप पर लाइक्स बेच रहे है, हम जैसे लाइक्स के लिए समय और कल्पना बेच रहे है... प्राप्त एकमात्र अनुभव होगा। लगातार के बदले कुछ नयापन मिलेगा, लाभ और हानि दोनों है। हानि यह है की कभी कभी इसकी आदत हो जाएगी, या तो लाइक्स के पीछे पागलपन.. खेर, मैं तो आपको ही कह सकता हूँ भाई, छोडो इन सब चक्करो को, अच्छी भली अपनी पहचान यहाँ चल रही है, लोगो को पढ़ते है, भावना, कल्पना, पढ़ते है। उसी में मजा है.. बाकी विद्रोह के परिणाम स्वरुप यह लोग ब्लॉक वगैरह का चिमटा दिखा सकते है, लेकिन अपनने भी पैसे दिए है, फ्री-फॉक्ट में नहीं बैठे है, इस लिए उनका चिमटा भी बेकार ही है.. छोडो यार.. अपन मजे करो..! कहाँ इन उलझनों में वापिस से उलझ रहे हो..
सीधी बात है, दुनिया सारी कुछ न कुछ बेच रही है, जहाँ फ्री मिल रहा है वहां प्रोडक्ट हम खुद है। जैसे जिओ ने फ्री डाटा देकर पहले हमे खरीदा, अब हमारी जेब भी उनकी है..! जैसे यह जगत जमादार के इलेक्शन हुए, वहां भी खूब ले-बेच हुई है। मस्क ने ट्विटर खरीदा.. ट्रम्प साब का खूब प्रचार किया, साब जित गए, अब ट्रम्प साब कर्ज चुकाएंगे, विश्व के देशो में टेस्ला और स्टारलिंक के लिए बाजार खोले जाएंगे.. सब खरीद रहे है, सब बेच रहे है।
कोई मेरे पोस्ट को भी खरीदना हाँ, लाइक देकर..!!!
चलो फिर आज इतना काफी है, बाकी भूलचूक माफ़ी है, बच्चो के लिए टाफी है, बड़ो के लिए कॉफी है और उससे भी बड़ो की चिल्लम है वहां साफी है...!
बढ़िया लिखा है 👏👏
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया पढ़ने के लिए...!🙏
Delete