"स्व. जामसाहब की लाक्षणिकता"
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सौराष्ट्र को राज्य का दरज्जा मिला था। जामनगर के जामसाहब सौराष्ट्र राज्य के प्रथम राजप्रमुख नियुक्त हुए थे। करार यूँ हुआ था की जामसाहब आजीवन राजप्रमुख के ओहदे पर रहेंगे। राज्य पुनःरचना के कुछ प्रश्न उठने पर भारत सरकारने एक पंच (आयोग) नियुक्त किया। उस पंच ने अहेवाल तैयार कर सरकार को सौंपा। आकाशवाणी (रेडियो) पर उस अहेवाल के मुख्य सुझाव प्रसारित किए गए।
उन्ही दिनों में सौराष्ट्र के विकासमंत्री के साथ जाम साहबने सौराष्ट्र की कुछ अच्छी गिनी जाती ग्राम पंचायतो की मुलाकात लेने का कार्यक्रम बना रखा था। उस कार्यक्रम के अंतर्गत वे जामनगर से राजकोट आए। बीचमे राजकोट के अतिथिगृह में रुके।
उसी समय उन्होंने रेडियो पर प्रसारित हो रही पंच के अहेवाल की कुछ बाते सुनी। उन बातो में एक थी राजप्रमुख पद को रद्द करने की।
जामसाहब इस सुझाव को सुनकर विस्मित हुए। झटका लगा, लेकिन कुछ बोले नहीं।
उसी दिन जूनागढ़ जिला की श्रेष्ठतम केवद्रा ग्राम पंचायत की और से एक समारंभ में हिस्सा लेने जामसाहब केवद्रा पहुंचे। लोगो ने बड़ी धामधूम से महेमानो का स्वागत किया। समारंभ शुरू हुआ।
विकासमंत्रीने केवद्रा ग्राम पंचायत की विशिष्टताएँ व्यक्त की। अन्य वक्ताओंने भी अपना भाषण दिया। उस समय के संसदसभ्य श्री नरेन्द्रभाई नथवाणी ने कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे बताकर जामसाहब को संबोधन करने के लिए विनंती की।
सुबह आकाशवाणी का फरमान सुनने के बाद मन में उठे जरा से प्रत्याघातो को दबाकर वे एकदम स्वस्थ रहते हुए उनकी लाक्षणिक शैली में बोलना शुरू किया :
"अभी आप लोगो के सामने अपनी पार्लामेंट के सभ्य बोलकर गए, उनका शरीर तो है कील में टंगे कड़े समान, लेकिन बुद्धिशाली बहुत है। पार्लामेंट में अच्छा काम कर रहे है। हम तो जन्मे तब से बुद्धि के बेर है, पढ़ने बैठा लेकिन विद्या दूर ही रही।
बुद्धि कहा से लाए? बडोने सोचा जिसमे बुद्धि की जरूरत न हो उस काम में मुझे लगा दे। लश्कर में बुद्धि काम नहीं, बस हुक्म सुनने और उसे निभाने। बंदा लश्कर में जुड़ गया।
धीरे धीरे लस्कर में आगे बढ़ता रहा, ज्यादा जिम्मेदारी वाला काम मिलता गया। अब उसमे बुद्धि की जरूरत पड़ने लगी, बन्दे को वहीँ तो समस्या थी। इस लिए सोचा अब लश्कर में अपना काम नहीं है।
जहाँ बुद्धि की जरूरत न हो ऐसा दूसरा कोई कार्य ढूँढना पड़ेगा।
कहते है राजा को बुद्धि की जरूरत नहीं होती। इसलिए बंदा जामनगर का राजा बन बैठा। धीरे धीरे राजकार्य में भी बुद्धि की तो जरूरत पड़ने लगी। बंदा फिर परेशानी में। सोच रहा था की राज करने में भी बुद्धि की आवश्यकता उत्पन्न होने लगी ! और अपना तो बुद्धि से बेर है। बुद्धि का जरा सा भी काम न पड़े ऐसा अन्य कोई कार्य खोज निकालना चाहिए।
मेरे जानने में आया की लोकशाही में प्रधानमण्डल काम करता है, लेकिन राजप्रमुख को बुद्धि की जरूरत नहीं होती। इस लिए हम जामनगर का राज छोड़कर राजप्रमुख बन गए।
लेकिन अब पता चला की राजप्रमुखो के पास तो यह प्रधानमण्डली प्रश्नो की रेल लेकर आती है, तो उन प्रश्नो को समझने, उन्हें सुलझाने के लिए बुद्धि तो चाहिए। इस लिए बंदा फिर से उलझन में है। राजप्रमुख के पद पर रहना अपने बस का नहीं। इस लिए अब राजप्रमुख पद छोड़कर कुछ ऐसा कार्य ढूंढ रहा हु जिसमे बूंदभर बुद्धि की भी जरुरत न हो। आप में से किसी को पता हो तो बताना।"
समारंभ के श्रोतागण को तो एक तरह का मनोरंजन मिला, लेकिन जिन्होंने सवेरे रेडियो पर राजप्रमुख पद को रद्द करने वाली पंच की बात सुनी थी वे लोग जामसाहब ने कितनी स्वस्थता से, कितने संतुलन से, अपने ऊपर ही कटाक्ष करके, अपनी खुद की शैली में मजाक करके, कड़वा घूंट पी गए है वह देखकर स्तब्ध रह गए।
अतिरिक्त :
- प्रसिद्द क्रिकेट प्लेयर तथा जिनके नाम पर रणजी ट्रॉफी खेली जाती है, वे रणजीतसिंहजी के दत्तक लिए पुत्र थे नवानगर (जामनगर) के महाराजा दिग्विजयसिंह जी।
- प्रेम से उन्हें लोग 'दिग्जाम' भी बुलाते थे। वे अच्छे क्रिकेटर भी थे।
- ब्रिटिश इंडियन आर्मी में वे सेकण्ड लेफ्टिनेंट से लेकर लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर रह चुके थे।
- BCCI के अध्यक्ष भी रह चुके है।
- द्वितीय विश्वयुद्ध में पोलेंड से निकले शरणार्थी बच्चो को अपने राज्य नवानगर में आश्रय दिया। उनके लिए बालाचड़ी में छोटा पोलेंड तैयार करवाया था।
- यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ काठियावाड़ (सौराष्ट्र) राज्य के वे राजप्रमुख भी रहे।
- तथा लीग ऑफ़ नेशन्स और यूनाइटेड नेशन्स में भी उन्होंने अपनी सेवाए प्रदान की थी।